प्रेम, नीर क्षीर विवेकी लोगों
के लिए नहीं है।
प्रेम का क्षीर सदैव मिला होगा,
उस नीर के साथ
जिसके बिना उसका अस्तित्व ही
समाप्त हो जाता है।
ऐसे में, नीर क्षीर विवेक से
काम लेने में,
प्रेम के अस्तित्व पर ही
संकट आ जाएगा।
प्रेम को बचाए रखने के लिए
जरूरी है,
उसको वैसे ही स्वीकारना।-
"मैं "
ये मेरा
अहंकार नहीं
एक तलाश खुद की
अस्तित्व की है खोज
वो अस्तित्व जो किसी के
वजूद में मिल गया है कहीं
अपनी पहचान बनाने की
कोशिश में बहुत कुछ
लिखती, मिटाती हूँ
लफ़्ज़ों में ढूँढती
हूँ अस्तित्व
कहूँ जिसे
अपना
"मैं " ...-
'निश्चित' है जो
सब पहले से
तो फिर मेरा क्या
और तुम्हारा क्या
'अस्तित्व' का सूरज
कब डूब जाए
मालूम नहीं...
खिड़कियां 'गिनती' है
तारो को
'वहम' की रात में अक्सर
डूबता है 'सूरज'
हिस्से के
बटवारें में...
जैसे हम
'बट' जाते है
'त्योहारों' में-
कहीं मंदिरों में देवी तुल्य पूजी जाती हैं ,
कहीं जन्म से पहले ही मार दी जाती हैं ,
कहीं ये विमानों की सवारी कर रही होती हैं ,
कहीं दहेज रूपी दानवों की भेंट चढ़ जाती हैं ,
कहीं देश समाज का प्रतिनिधित्व कर रही होती हैं ,
कहीं ख़ुद के ही घर में अपनों द्वारा ही दबा दी जाती हैं ,
कहीं आने वाले पीढ़ी का सृजन करती हैं ,
कहीं ये भेड़ियों से भी नहीं बच पाती हैं ,
ये नारियाँ युगों युगों से आजतक भटकती हुई आईं हैं ,
त्रेता से कलियुग तक अपना अस्तित्व तलाशती आईं हैं ।।-
कभी कभी मेरे शब्द
सिसकने लगते है
बेबसी सोख के
किसी नन्हें हाथों
की फैली हथेली
देख कर |
बौनी लगने लगती है
प्रेम मे रचि मेरी
प्रेम कविताएँ |
..
क्यों नहीं समेट पाती मै
उनकी आँखों के
सपनें अपनी कविताओं मे?
क्यों स्वार्थी सी प्रतीत होती है
मेरी कलम?
..
..
क्यों मासूम चेहरे की कालिख
को पोछ नहीं पाता
मेरे शब्दों का पानी?
क्यों? क्यों? क्यों?
ये सवाल मेरा,मेरी ही कविताओं से
शब्दों से 🙏🙏🙏🙏-
अस्तित्व मेरा या तुम्हारा...
कब मिट जाए क्या पता...??
वक्त के पहियों तले...
कब कौन कुचल जाए क्या पता...??-