मूमल की विरह इंतजार हो, महेंद्र की कसमसाहट हो,
मारू की दिल की प्रेम पुकार हो, फिर ढोला बेक़रार हो,
संयोगिता की तस्वीर हो, पृथ्वीराज के उसमें प्राण हो,
उजळी की बदन गर्माहट जो, जेठवै को जीवनदान हो,
कंवल का प्रेम स्वाभिमान हो, या चाहे केहर की कैद हो,
हीर को चाहे कोई जहर दे, चाहे रांझा बनते फ़क़ीर हो,
मस्तानी सी बहुआयामी हो, बाजीराव कम जिंदगी हो,
सोहिनी का घड़ा कच्चा हो, या महिवाल की चाकरी हो,
शीरीं की बला की खूबसूरती हो, फरहाद का जुनून हो!
बूबना दिल-ओ-जान हो, जलाल को दीदार की आस हो,
रूपमति सुरीली कंठ हो, चाहे बाज बहादुर की वफ़ा हो,
आम्रपाली हो नगरवधू जो, या बिम्बिसार मगध सम्राट हो,
भागमती चाहे बंजारन हो, कुली कुतुब का हैदराबाद हो,
हेलेना हो ग्रीक विदेशी जो, चंद्रगुप्त मौर्य चाहे स्वदेशी हो,
बणी-ठणी दासी कवियत्री हो, सावंत कला कद्रदान हो,
भारमली चाहे कोई दासी हो या मालदेव चाहे राजा हो,
रामी धोबिन की बात हो, चंडीदास का आत्मिक प्यार हो,
रजिया मल्लिका-ए-सल्तनत हो, चाहे याकूत गुलाम हो,
_राज सोनी
इतिहास की प्रेम मिसाल हो तो आपके प्रेम का हिसाब हो!-
दूब की वह अंगूठी
जो मेरी अनामिका
पर कसी थी तुमने
कभी सूखी ही नहीं...
सिंच कर मेरी अश्रु धाराओं से
गहराती रहीं उसकी जड़ें...
समय के साथ-साथ
हृदय से होकर आत्मा में
बिंध गईं!
और...
बाँध दिया मेरी आत्मा को
तुमसे जन्म-जन्मांतर के लिए!-
बेहिसाब ख्वाहिशे का आलम हमसे ना पूछिये,
कैसे हो मुकम्मल, लेकिन रिश्ते की नजाकत है!
कहना चाहता हूँ बेशुमार बातें जो कह नहीं पाता,
वो समझती है सबकुछ, ये उसकी लियाक़त हैं!
छू लूँ उसको, लगा लूँ गले, भर के बांहों में उसे,
सोच लेता हूँ मैं कभी कभी, ये मेरी हिमाकत है!
छुपाती है, चुप रहती है, कहती है कुछ हुआ नहीं,
हाल-ए-दिल जाहिर है, आँसुओं की सदाक़त हैं!
है हम आधे अधूरे एक दूसरे के बिन हर शय में,
हर खुशी हर गम में, एक दूजे की शराकत हैं!
ख़्वाबों में भी जुदाई बरदास्त नही होती उससे,
वजह साफ है, वो मेरी साँसों की रफाकत है!-
दशकों पहले जिसको सोचा, वो कोई अनजानी थी,
दरबदर मैं रहा भटकता, जर्रा जर्रा की तलाशी थी!
सावन रीते, बारिश बरसी, कितने पतझड़ गुजर गए,
वो ही एक नही मिली, जो मेरे मन की कल्पना थी!
पल पल बीते, बीते सालों, उम्मीद धूमिल होने लगी,
पर दिल बोला कि सब्र रख, वो यंही कंही होनी थी!
आँखे धुँधली हो रही, उम्र का तकाजा जब होने लगा,
सूरज हुआ मंदम-मंदम, पर उम्मीद फिर भी कायम थी!
हुआ फिर कुदरत का इशारा, धड़कन यूँ बढ़ने लगी
मैं अकेला नही इस जहां में, वो भी एक अकेली थी!
वो तारीख मुझे याद नही, पर तारीख बन के वो आई,
वो कर रही मेरा इंतजार, जिससे खुद अनभिज्ञ थी!
मिला जब मैं उससे पहली दफा, खुद को न इल्म हुआ,
पर हुआ जब इक़रार तो, पलकों में मोती भरती थी!
भले हम दूर हो या पास हो, पर एक दूजे के हिस्से हैं,
कुछ निशानी कुछ कहानी, अमरप्रेम की हम हस्ती थी!
___Mr Kashish-
देख लेना आप प्रिये! हमारी आत्मिक प्रेम की कथा अद्वितीय अद्भुत ह्र्दयग्राही व अमर रहेगी..
जब भी होगा जिक्र आत्मिक प्रेम का लोगों की जुबान पर सिर्फ और सिर्फ हमारी प्रेम की चर्चा रहेगी...-
वायु है राधा तो
मिश्रित प्रेम हैं कृष्ण
राधा है दृष्टि तो
नयन हैं कृष्ण
राधा है जल तो
तीव्र धारा हैं कृष्ण
राधा है मझधार तो
किनारा हैं कृष्ण-
चलो निस्वार्थ प्रेम कहानी को एक बार फिर से दोहराते हैं।
मैं राधा बनकर तुम्हें चाहूंगी।
तुम कृष्णा बनकर मेरा साथ निभाना लेना।
तुम थोड़ा त्याग और बलिदान से अपना हर धर्म निभा लेना।
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प्रेम की परिभाषा सिखाइ जिन्होने...
वे किसी बंधन मे बंधे नही,
लेकिन वे दिलं से एक दुसरे से बंधे है....
राधा-कृष्ण का प्रेम सारी सृष्टी मे अमर है...-
कुंदन बन निखरता प्रेम विरहा की भट्ठी में तपकर
नारी बनी शक्ति नर की, पीती गरल उर में हंसकर-
वो दौरे मोहब्बत कुछ और था।
मोहब्बत मुक्कमल हो न हो,
जिन्दगी बस एक पर कुरबान होती थी।-