मैं बिखरी हूँ तेरे दर पे ,मुझे समेट लेना कान्हा,
मेरी निस्वार्थ भक्ति ही , तुम भेंट लेना कान्हा,
इश्क़ तेरा ख़ुदा की दुआ सा,चाहत मेरी रूहानी,
शायद लिख जाए पन्नो पर,मेरे इश्क की कहानी,
जहां की हर भेंट तुच्छ है , तेरी भक्ति के आगे,
तू ही तो बाहें फैलाये मिलेगा,मेरी मुक्ति के आगे,
तू ही आएगा मुझे लिवाने, मोक्ष पथ पर ले जाने,
वहीं द्वारिका में खोलूँगी , मेरी भक्ति के खजाने,
मेरी रूह को मिलेगा ,जब स्थान तेरे दिल में,
कोई ना मुझसा सुभागा होगा,जग की महफ़िल में।।
-पूनम आत्रेय
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