हर शौक़ पूरा हुआ करता था , दिन भले ही मुफलिसी के थे,
चंद सिक्कों से ही नवाबों सी शान थी, वो दिन ही ख़ुशी के थे,
ना कमाने की चिंता थी , ना जिम्मेदारी का बोझ था,
ना दर्द से सरोकार था उस बेफिक्र उम्र में, सब लम्हे हँसी के थे,
कागज़ की कश्ती से भी , सैर समंदर की हो जाया करती थी ,
थी जिंदगी में हर पल खुशियों की बारिश, ना लम्हे बेबसी के थे,
पिता का साथ छूटा तो , शुरू हुआ मुश्किल भरा सफ़र,
हुआ झंझावातों से सामना , तो आंखों में बादल नमी के थे,
ख़त्म हुआ जिंदगी से , जो था बेफ़िक्री का आलम,
जो ख्वाब थे आस्मां से ऊंचे , अब वो सब ज़मीं पे थे,
समझ आने लगी जिंदगी में , अब पैसों की ताकत,
सब आजमाईश-ओ-इम्तहानों के, निशाने हमीं पे थे।।
-पूनम आत्रेय
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अम्बर से चला है टूटकर ,
ज़मीं पर बिखरने को ,
तारा नहीं वो ख्वाब है,
फिर चला है निखरने को,-
तेरी आंखों के समंदर में , उतरने को जी चाहता है,
तेरी बाहों में टूटकर , बिखरने को जी चाहता है,
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फुरसत नहीं साँस लेने भर की, तो लफ्ज़ों को पुकारे कैसे,
एक शायर के ख्याल कहिए तो , कागज़ पर उतारे कैसे,
अंदर तलक टूट गया है दिल, जिंदगी की कारगुज़ारी पर,
कतरा कतरा हो गए जो,उन बिखरे ख्वाबों को संवारे कैसे,
जी जान लगा दी हमने, जिंदगी का हर इम्तिहान देने में,
ना जी सके ना मर ही पाए , अब जिंदगी को गुजारें कैसे,
बड़ी शिद्दत से की थी शायर ने , लफ्ज़ों से दोस्ती,
नम हुई आंखों से लफ्ज़ों को अब , निहारे कैसे,
सोचा था कि लिखेंगे कागज़ पर , जिंदगी का अफसाना,
जब रूठ गए अल्फ़ाज़ तो निखरेगी लफ्ज़ों की बहारें कैसे।।
पूनम आत्रेय
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पंख कटे हैं, मगर मेरे हौसले जवां हैं,
मेरे हौसले से ऊंचा , वो आकाश भी कहां है,
हौसलों ने भरी उड़ान , तो कहा मेरे दिल ने,
कि सितारों से आगे ,एक और भी जहां है,
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इंद्रधनुष के रंगों का गहरा ,प्यार है मेरा,
तुझे पाकर ही सम्पूर्ण, ये संसार है मेरा,
अपने ऊपर ले लूं मैं , तेरी सारी बलाएं,
एक तू ही तो जीवन आधार है मेरा।।
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उतार फेंका है आड़म्बरो का गहना,
बहुत हुआ, अब नहीं पर्दो में रहना,
कमजोऱ नहीं शक्ति हूँ, दुनिया को दिखाना है,
झूठे रीति रिवाजो से, अब नहीं निभाना है,
आँखे मिलानी हैं ख़ुद से, आत्मनिर्भर बनकर,
सुकून मिलेगा अब, कुछ नए ख्वाब बुनकर,
ठान लिया है अब, बचाना है धरा के अस्तित्व को,
पुरुषो की अग्निपरीक्षा से, बचाना है स्त्रीत्व को,
बनाना है एक जहाँ ऐसा, जिसमे स्त्री सबल हो,
चाहे विकट हो परिस्थिति,किसी हाल ना निर्बल हो,।।
-पूनम आत्रेय
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बहते रहेंगे युगो युगों तक,
हम इश्क़ के बहते धारे से हैं,
मिलकर भी मिल ना पाए,
हम नदी के दो किनारे से हैं,
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बंधन है bये जन्मों जन्म का, एक उम्र में कैसे छूटेगा,
नाम तेरा ही होगा लबों पर,ज़ब साँसों का धागा टूटेगा,-
दिल के दरवाज़े पर, किसी ने दस्तक दी है,
कोई मोहब्बत में दिल पर, छा जाना चाहता है,
आहट हुई है एक अनजानी सी इस दिल पर,
कोई इश्क़ की हदों को, आज़माना चाहता है,
तंग आ चुका है जो, ज़माने के ज़ुल्मो सितम से,
वो परिंदा दिल का, फ़िर से मुस्कुराना चाहता है,
ठोकर मिली थी, जिस मोहब्बत की रहगुज़र पे,
दिल उन्ही रास्तो पर, फ़िर से जाना चाहता है
ढक रखा था जिसे लबो ने, ख़ामोशी की चादर से,
बस वही बात आँखों से, अब बताना चाहता है,
छुपा रखा था जहाँ के डर से, जिस मोहब्बत को,
उसी मोहब्बत में दिल को,अब धड़काना चाहता है,
दिल मुस्कुराने लगता है,जिस शख्स के देखने भर से,
उस शख्स को अब ये दिल , टूटकर चाहना चाहता है।।
-पूनम आत्रेय
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