QUOTES ON #अचूकनिशाना

#अचूकनिशाना quotes

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27 FEB 2017 AT 2:29

कर देती हैं घायल,
क्या अचूक निशाना है,
नज़रें देखो उनकी जैसे तीर-कमान,
यह ज़ालिम भी उनका दीवाना है।
- साकेत गर्ग

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27 FEB 2017 AT 8:16

चाहे सुई में होगा धागा पिरोना
या लगाना हो अचूक निशाना
दृष्टि केंद्रित और चित्त एकाग्र होना चाहिये।

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25 MAR 2017 AT 17:08

पानी की तलाश में श्रवण, पहुँचा सरयू तीर
शब्दभेदी बाण था वो दशरथ का उड़ता तीर
लगाअचूक निशाना, श्रवण का सीना चीर
मुख से चित्कार और देह से फूट पड़ा रुधिर
सुन चित्कार श्रवण की, दशरथ हुए अधीर
मात तात हैं प्यासे मेरे, पिला आओ उन्हें नीर
ये कह कर दशरथ की गोद में त्यागे उसने शरीर

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27 FEB 2017 AT 7:10

हर सपने तोड़ ही डालती है अपनी गुलेल से
अचूक निशाना है जिंदगी का।

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27 FEB 2017 AT 13:06

हूँ रौशनी से भरा एक सितारा मैं,
चाहूँ अंधेरों से तुम्हे दूर रखना,
और नज़र उठाके जब दुआ मांगो,
बस अपना निशाना अचूक रखना।

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27 FEB 2017 AT 8:12

निशाना तेरा अचूक ही था,
दिल पे नहीं घमंड पर लगा ।
प्यार तो ज़ख्मी पडा रहा,
नफरत पल भर में जाग उठी ।।

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27 FEB 2017 AT 7:19

यूँही नहीं था दिल उनका दीवाना
लक्ष्य था अटूट, अचूक था निशाना
निगाहें थीं मछली की आँखों पे उनकी
और जीत लिया दिल हमारा

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9 MAR 2021 AT 12:21

जो चूक जाए हदफ़ से वो वार थोड़ी है
अजी ज़बान है, कोई कटार थोड़ी है


न ढूंढ़ तू कोई औज़ार चोट देने को
जो तेरा लहजा है कम काटदार थोड़ी है

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27 FEB 2017 AT 20:14

ज़लील जो कर दिया उसने मुझे,
बता शिकायत भी मैं किससे करती,
मेरे विश्वास की दीवार को अपनों ने ही,
अचूक निशाना लगा छिन भिन्न कर दी।

बाहर जाकर मैं अपने लिए लडूं कैसे?
बता मुझे सिर उठा चलूँ कैसे?
जब साथ चलने वालों ने ही मेरा,
आत्मसम्मान कच्चे धागे जैसे तोड़ दिया।

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27 FEB 2017 AT 18:31

वो सुहानी सर्दियों की शाम, अनमना सा राजू चप्पल पैरों में डाल घर की छत पर सूख रहे ऊनी स्वेटर और जुराबों को लेने जा ही रहा होता है, कि तभी किसी के साइकिल के आने की आवाज़ सुन, एक नज़र वो बरामदे की ओर डालता है। पिताजी काम से लौट आए थे, और राजू की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। सर्दियों के मेले लगे थे गाँव में, राजू खुश होता भी नहीं तो क्यों। पिताजी का हाथ थाम, गले पे माँ के काले टीके के निशान को एक हाथ से छुपाते, राजू मेले की ओर चल पड़ा। जाते ही उसकी नज़र सबसे पहले बंदूक से गुब्बारे फोड़ने वाले खेल पर पड़ी, जिसका इंतज़ार उसे साल भर से रहता है।
धागों से लटकी टॉफियां, मोमबत्तियां और छोटे छोटे खिलौनो को देख, राजू की आँखें हर बार की तरह एक अलग चमक के साथ नज़र आती हैं। पिताजी की मदद से बन्दूक को उठाकर जब राजू निशाना साधने की कोशिश करता है, तभी उसकी नज़र पास खड़े एक लड़के पर पड़ती है। वो भी नन्हें राजू की उम्र का प्रतीत हो रहा है, लेकिन उसके कपड़ों से उसकी उम्र का अंदाज़ा लगाना थोड़ा मुश्किल हो रहा है। राजू आँखों से इशारा कर उसे बुलाता है और बन्दूक आगे कर उसे एक बार निशाना लगाने को कहता है। कुछ झिझक कर, वो बंदूक हाथ में ले, निशाना लगाता है। नन्हा राजू देख रहा है कि उसकी नज़र टॉफ़ी के गुच्छे पर है। उसका साथ देने, राजू बन्दूक पकड़ता है। पहली बार जादू चल जाता है ज़रुरत का कि अब निशाना अचूक लग जाता है दोस्ती का।
- सौRभ

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