QUOTES ON #YQWOMEN

#yqwomen quotes

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19 JUN 2021 AT 19:14

आज फिर मानवता शर्मसार हो गई,
फिर एक नाबालिक बलात्कार का शिकार हो गई !!

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13 AUG 2020 AT 17:31

स्निग्ध परत सी उसकी काया
विकल-स्त्रीत्व सी सोची जाए
इस सभ्य समाज में उसकी गरिमा
वस्तुपरक सी तोली जाए
उसके अंगों की सुघट्य बनावट
हवस दृष्टि से देखी जाए
घर में पूज्य है लक्ष्मी जैसी
बाजारों में बेची जाए
दंभी पुरुषार्थ की भूख मिटाती
चिथड़ों-चिथड़ों में नोची जाए

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4 AUG 2020 AT 20:40

Hey women,
yes it's to you
I'm talking!

How long would your
worries crush you down?
For how long 'how the
world sees you' will
remain the most
important factor in
your life? You are not
doll to look perfect and
to keep a measured
smile all the time.
Are you not awesome
without the layers of
hidden feelings too?

(Rest in caption)

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22 JAN 2019 AT 22:59

कदम से कदम,
आज वो मिलाने चली है

अपनी पलकें नम कर के,
वो हर तरफ ख़ुशी फैलाने चली है

कई रंजिशे है लोगों से फिर भी
देखो वो आज मकान को घर बनाने चली है,,

खुद बुरी नज़रों मे आ कर
वो औरों को बचाने चली है

दूसरे के सपनो को बढ़ावा दे कर
वो अपने सपने को मिटाने चली है,,

तोड़ कर पिंजरा रुकावटों का
देखो वो आज खुद अपना आशियान बनाने चली है

थाम कर हाथ किसी पराये का
वो माँ बाप को भुलाने चली है

तोड़ सारी मर्यादा समाज की
देखो वो लड़की आज नारी कहलाने चली है

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17 AUG 2020 AT 10:02

उन शब्दों ने मानो उसका अस्तित्व ही झकझोर दिया।
अपने वजूद की तलाश लिए,वह उन शब्दों को मन ही मन दोहरा कर एक जंग में खुद को स्थूल पड़े देखती है। स्त्री-सम्मान का नहीं वह समाज की कुरीतियों का भी समक्ष ब्योरा कर पा रही है।
स्त्री होने के हर पड़ाव,हर तत्व,हर रूप से उसे घृणा के अतिरिक्त कुछ ना रह गया है। देह में इतनी स्थिरता है कि वायु का वेग भी उस पर आघात करता है।
यह उसके प्रेम का परिणाम नहीं तो और क्या है?
जिसका सर्वस्व नीलाम हो जाए उसे शब्दों का लोभ क्या होगा?
जिसका आसमान उससे छिन जाए उसे भोर की लाली क्या लोभित करेगी?
मन की खेती सूखती है तू शब्दों का गला घोटा ही जाता है। आत्मसम्मान की वह मूरत, यथार्थ की इमारत से गिरकर खंड-खंड हो गई।
इस खंडित स्वरूप से वह स्पष्ट देख पा रही है-
स्त्री होने की कुछ सीमित रेखाएं, ह्रदय के क्षितिज से लौटती हुई लाचारी की किरणें, विवशताओं का नग्न स्वरूप, मूक-बधिर कल्पनाओं से निकलता शंखनाद।

उसके निकट से होकर आज मृत्यु गुजरी है,अवश्य ही कल वह इसे भी पा लेगी।

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22 SEP 2018 AT 10:00

( मुझे नफ़रत सी हो गयी हैं,,)
मुझे नफ़रत सी हो गयी हैं,
जिन्हें दर्पण ही देखने नहीं आता, वो आज हमे चरित्र सवारना सिखाते हैं,,
खुद लगाये हैं, अश्लीलता का चश्मा और हमारे वस्त्रों को अश्लील बताते हैं,
ये देखकर मेरी नन्ही सी जान भी हैरत मे पड़ गयी हैं,
हाँ आज मुझे इस भद्दे बेरहम समाज से नफ़रत सी हो गयी हैं,
खुद तो बेलगाम कुछ भी बोले जाते हैं, और हमारी एक आवाज पर सवालो के ढेर लगाते हैं,
खुद का नज़रिया तो नापाक लिए फिरते हैं,
और हमारी सांस लेने के अंदाज पर भी प्रश्नचिन्ह लगाते हैं, ये देखकर मेरी आत्मा मे एक बगावत सी हो गयी हैं, हाँ मुझे इस भद्दे बेरहम समाज से नफ़रत सी हो गयी हैं, जिन्हें धर्म- अधर्म, सभ्यता-कुप्रथा के बीच का अन्तर ही, नहीं पता, आज वो महन्त बने स्त्रीधर्म सिखाते हैं,
जोड़ के नाम परमात्मा का अपने नाम से भगवान शब्द को भी दूषित कर जाते हैं,
स्त्री का धर्म तो दुर, स्त्री की मर्यादा लाज और मान सम्मान को साधु बने रावण ,एक क्षण मे लूट जाते हैं,
ये देखकर मेरी अन्दर की अग्निपरीक्षा मे जलती सीता जीवित सी हो गयी हैं, हाँ आज मुझे इस भद्दे बेरहम समाज से नफ़रत सी हो गयी हैं,
अब तो असार ही नहीं की धरती माँ फटे और हम बेटियों को स्थान दे,
वरना माँ वसुंधरा की गोद में आराम से थका हुआ सर रखकर सोने कि मेरी भी तबियत सी हो गयी हैं,
हाँ मुझे इस भद्दे ...

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15 MAR 2021 AT 21:24

फिर से मेरी पवित्रता सिद्ध करने की,
हो रही प्रतीक्षा है।
फिर से चरित्र की ज्वलंत वेदी पर,
होनी एक अग्निपरीक्षा है।

पर क्या सत्य ही मेरा अस्तित्व,
इन सुलगते प्रश्नों का अधिकारी है?
मेरे सम्मान से जादा क्यूं पलड़ा
सन्देह का इतना भारी है?

यदि मैं अपवित्र तो ये बोलो,
संसार पवित्र हुआ कैसे?
मेरे ही गर्भ से जन्मी सकल सृष्टि
शुद्ध कोई और चरित्र हुआ कैसे?

मेरी परीक्षा लेनी हो यदि तो
सृष्टि का हर कर्मकांड जला दो,
हां, मेरी अग्निपरीक्षा से पहले,
तुम समग्र यह ब्रम्हांड जला दो।।।


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10 JAN 2021 AT 12:52

धुंध है चारों तरफ हर चेहऱे पे नक़ाब है,
हँसतें हैं तुम्हारे साथ वो पर नियत ख़राब है!

बच कर चलना सोच कर निकलना इनकी गलियों से,
हर पड़ने वाली नजर तुम्हे नोचने को बेताब है!

प्यार व्यार सिर्फ दिखावा है दरअसल नफ़रतें बेहिसाब है,
नारी तुम खुद से ख़ुद का ख़याल रखना ज़माना ख़राब है!!

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14 MAY 2020 AT 15:24

ये बेटियां
इतनी भोली होती नहीं
अक्सर चुरा लाती है
माँ की ममता आंचल में समेटे
भाई का प्यार कलाई में बांधे
दादा का दुलार आंखो में चुपके
दादी का आशीर्वाद संस्कारो में रख के
आंगन की चहक मुस्कुराहट बनके
पिता का लाड़ बाहों में भरके
पायल की खनक घर सुना करके
बचपन के दिन लड़ते झगड़ते
वो दोस्तों की यादें सीने में रख के
गुड्डे गुड़ियों वो बंद बक्शे में भर के
वो टाँफिया, चॉकलेट को अलविदा कह के
चल देती है बेफिक्र
लाल जोड़े में नए सपने लिए
किसी और का घर सजाने ।।
-Dsuyal






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5 NOV 2019 AT 17:29

न तौल उसे धन और ज़ेवरों से,
तौल सको तो तौल लेना उसे,
अपने अनमोल रसिक बोलों से।
उसे तलब नहीं तेरे शान शौकत की,
वो तो बस चाहे प्यार के कुछ लम्हे,
तेरी इस हंसी जिन्दगानी से।
गर न दे सके उसे ये बोल, ये लम्हे,
तो बस बाहों में भर उसे आजाद कर देना,
इस सांसारिक मोह के बंधनों से।

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