कुछ भी तो रहता नहीं साथ में
सब कुछ बेगाना-सा नजर आता है,
आज कल हर चेहरा इस शहर में
मुझे अंजाना-सा नजर आता है,
मेरे सारे किस्से अब पुराने हो गए
उनमें अधुरा सा फ़साना नजर आता है,
कोई करता नहीं भरोसा मेरी बातों पर
मेरी निगाहों में उन्हें बहाना-सा नजर आता है,
यूं तो रहती है आस-पास मेरे भीड़ बहुत
मगर एक शख़्स में ही अब ज़माना नजर आता है।।
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