जल धरा का पीता चातक, प्यास अधिक लग जाने से
परवाना डरकर बैठा है, शम्मा के जल जाने से
बाह्य वर्ण को देखे दुनिया, अन्तस् का कोई मोल नहीं
टूटी तलवारें बिक जाती है, केवल म्यान सजाने से।
जिसमें भोजन पाया इसने, उस थाली में छेद किया
नारी से ही जीवन पाकर, नर-नारी में भेद किया
मद से मन्दमति बौराया, अहंकार में फुला है
गलती का प्रायश्चित हो जाए, पाप न रहा भूलाने से
देवालय सुन-सान पड़े है, शोर उठा मयख़ाने से
हर्षित मानव हो रहा है, दानव आज कहाने से
सत्य, करुणा, दया नहीं कुछ, स्वार्थ-सिद्धि सर्वोत्तम है
'कबी' है इसका हश्र क्या होना, पूछो कोई जमाने से
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