Mohini Sharma   (Mohini sharma)
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Joined 26 April 2021


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Joined 26 April 2021
6 HOURS AGO

हर किसी व्यक्ति की ये आखिरी इच्छा होनी चाहिए
कि वह केवल एक दिन ही सही
" वैसे जीए जैसे वो जीना चाहता है"

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20 HOURS AGO

आज के आधुनिक युग में भी
लिख रही हूं मैं खत तुमको
और लिख रही हूं सारे सवाल
कि जब तुम मिलोगे तो पूछ लूंगी
जो उठ रहे हैं मेरे मन में

सुना है खत में छुपा होता है
अत्यधिक प्रेम, भावनाएं,
जो मैंने लिखी हैं
अपनी अंतरवेदना से

जब तुम पढ़ोगे न
तो देखना
झर जाएंगी तुम्हारी आंखे भी
मेरा प्रेम खत में देख कर

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YESTERDAY AT 17:14

रास्ते भी अडिग थे तो
मेरे हौसले भी अडिग थे
मैंने देखा है उन रास्तों का संघर्ष
पर अभी बाकी है....संघर्ष मेरा
ए रास्तों तुम जितनी भी
लो परीक्षा मेरी
मेरा हौसला उतना ही बढ़ता जाएगा..!!

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27 APR AT 22:00

ए मेरे ख्वाब तुम
मेरे सपनों में नही
मेरे मन में ही आना
क्योंकि सपने तो कांच
की भांति होते हैं
झटके से टूट जाते हैं
पर मेरा मन ही करता है
उनके मन तक की दूरी तय

और पता है एक बात
मेरे मन को नहीं
तोड़ा जा सकता है
किसी भी चीज से

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26 APR AT 10:28

दो राही शायद परिचित थे एक दूसरे से
बैठे थे दोनो विपरीत दिशा से आने वाली
ट्रेन के इंतजार में
एक दूसरे के सामने
बोले कुछ भी नही थे
लेकिन उनकी आंखे एक दूसरे
से बहुत कुछ कह रही थीं
शायद समाज ने सिल दिए थे उनके होंठ
इसलिए अपनी मन की बातें वो बस
आंखो में ही किए जा रहे थे...

फिर कुछ अंतरा बाद उनकी ट्रेन आ गई
और चले गए वो अपनी अपनी मंजिल की ओर

इस दौरान जो सबसे सुंदर घटना थी वो
ये थी कि उन दोनो ने एक दूसरे की आंखे
चुरा ली....
और रखी अपने मन में
स्मृतियों के रूप में....

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24 APR AT 12:51

भटक जाता है ये मन
कहीं उसकी बातों में
तो कही उसकी यादों में
फिर पकड़ के लाती हूं इस मन को
कितनी ही मिन्नते करवाता है
तब जाके कहीं समझ पाता है
कि इसे मेरे साथ रहना है.....

पर फिर भी कोई फायदा नहीं
कुछ देर बाद फिर भाग जाता है
ये मुझसे दूर..
उसकी ही यादों में...!!

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23 APR AT 9:33

सौ रास्ते बंद हो भी गए हों
तो भी तुम चलो ना.....
एक आशा की किरण लिए
मन में एक विश्वास लिए
तुम चलो ना...

ये क्यों सोचते हो कि कुछ हाथ नहीं आएगा
यदि फिर भी कुछ हाथ नहीं भी आएगा
तो तजुर्बा आएगा...

मंजिल की क्यों राह देखते हो
आ जाएगी वो भी तुम्हारे पास
तुम्हारा विश्वास देख कर
बस तुम चलो ना..

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22 APR AT 13:32

कहीं तो बांट रहा होगा ना भगवान सुख दुख
और साथ में दे भी रहा होगा उनको सहने की क्षमता

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21 APR AT 16:53

"अत्यंत दुख में केवल खुद का ही बने रहना
बिल्कुल ऐसा है जैसे कोई बीज अंकुरित हुआ
हो बंजर जमीन पर"

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21 APR AT 13:41

यहां कुछ भी स्थिर नहीं है
पेड़ भी बंजर नही रहे सदा के लिए
वसंत के आगमन पर फिर से उस पर
आई नई पत्तियां और फूल
पहाड़ भी सूखे नही रहे सदा के लिए
उन पर भी आई हरियाली
तालाब भी नही रहे सूखे सदा के लिए
वो भी भर गए बारिश के आगमन पर

तुम्हारे दुख भी नही रहेगें
साथ सदा के लिए
उनका भी अंत होगा

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