अजीब खेल रचें इंसान । पर नाम भगवान का होता है ।। कभी जाति तो कभी धर्म । मगर ख़ून हमेशा इंसान का होता है ।। ना जिहादी ना ज़ालिम । वो क़ातिल सिर्फ़ शैतान होता है ।।
आज फ़िर ये धरती हुई है शर्मसार फ़िर हुई औरत कि आबरू तार तार वो इंसाफ़ के लिए कहती रही बार बार एक दिन चली गयी वो छोड़कर अपना संसार फ़िर सत्ता ने वो खेल खेला जो खेलता है हर बार रोप प्रत्यारोप करता रहा एक दूसरे पर वो बार बार क्या हुआ कैसे हुआ कोई खोजता नही एक भी बार जहाँ अनेको बार हुआ औरत की इज्ज़त पर वार देखो वहाँ बन रहा है राम सीता का दरबार....!! देखो आज फ़िर ये धरती हुई है शर्मसार... जहाँ बन रहा है राम सीता का भव्या सा दरबार...!!