कोई समझे मन का 'कसक' तो क्या करोगे
बता दोगे उसे या तुम कितना छुपा लोगे
जो छुपा ना सके हाल ए दिल " ए मुसाफिर"
तो क्या तुम नदियों को समंदर में बहा दोगे
जो पता चले उसकी गहराई तो क्या
तुम भी उसके अंतस की कसक मिटा दोगे...?-
दूर होते चले गए हैं वो जो कहते थे
हम बहुत करीब हैं तुम्हारे....।।।-
दिलों में चलते सवाली ख्वाब मार देती है
राह चलते लोगों का रूआब मार देती है
अकेले में निर्जनता मार देती है...
भीड़ का हिस्सा बने तो बेगारी मार देती है
जो घर पर 'बाप' कि लाचारी तो 'मां' के
सवालों से घिरी बदहाली मार देती है
ये समाज में नीचता कि दीवार मार देती है...
कौन मारता है इंसान को ??
लाचारी आस देती है परिवार साथ देता है
बस ऐसे ही इंसान को इंसान मार देता है...।।-
स्नेह के अभाव में पले लोग कठोर हो जाते हैं,
इतने की ना वो किसी की पूजा स्वीकारते है
और न हि टूटते है...
उनके कठोर आचरण से बने मार्मिक हृदय
की चोट को भर लेना चाहते हैं वो, दूसरे के
लहू से बिना किसी आश्चर्य कि अनुभूति के...।।-
ए जिंदगी, कि हम 'काश' होते, कल नहीं
तो आज किसी के तो खास होते हैं...
मिलते ना यूं किसी को आसानी से...हम 'काश' होते...
किसी की मांगी हुई दुआओं के हम भी फ़रियाद होते,
ए जिंदगी, काश कि हम भी किसी के "खास" होते हैं...।।-
बहनों को स्वावलंबी बनाने में लगे हर एक भाई को बोध है रेशम के धागे का, जो वंचित रह गए वह खुद को आदमी कहते हैं...।।-
किसी के मौन को समझने की तुम्हारी शक्ति अपने मन को खो देती है और जो मन पास हो तो मौन को समझना व्यर्थ है।।।
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औरत
#13
न नींद है न ख़्वाब
बचे है इन "आंखों"
में अब...बस चाहत
है सुकुं को पा लेने की...
जो खो गया है शायद
इस बड़े से विरान
"शहर" मै कहीं...।।-
मुसाफ़िर
#45
आईने में निहारू तो निहारु किसे मैं, 'ए मुसाफ़िर'
कि वहां भी मुझे अब ये समाज नज़र आता है...।।-