इस कदर आख़िर क्यो बैठे हो तुम,
क्या जमाने के सताए बैठे हो तुम।
जमाने का क्या है ये बदल जायेगा,
फिर क्यो मुंह छिपाए बैठे हो तुम।-
कल मुझे राह में चाँद मेरा मिला
दूधिया दूधिया सा बदन हो गया,
कुछ ना मैने कहा कुछ ना उसने कहा
भारी बोझिल सा ये मेरा मन हो गया-
💛
मेरी उदास पड़ी जिंदगी में आस क्यों दिया
साथ देने जीवन भर मुझे विश्वास क्यों दिया
काट लेते भले जिंदगी झोपड़ी में अकेले
तुम दिल में अपने रहने को आवास क्यों दिया-
एक दिन राहों से राहगीर ने कहा,
मिल के रहते हो कैसे हर एक हाल में।
राह बोला हम रहते हैं मिलकर इसलिए,
कभी रुकावट न आये तेरी चाल में।।-
लो हो गया सवेरा ,पलके मसल के देखो
मंज़िल तो सामने है , बाहर निकल के देखो।
सागर उतावला है नदीया समेटने को ,
थोड़ा हम मचल के देखे थोड़ा तुम मचल के देखो।।
-विष्णु सक्सेना-
हमें कुछ पता नहीं है हम क्यों बहक रहे हैं,
रातें सुलग रही हैं दिन भी दहक रहे हैं..
जब से तुमको देखा, हम इतना जानते हैं...
तुम भी महक रहे हो, हम भी महक रहे हैं।-
रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा
एक आई लहर कुछ बचेगा नही
तुमने पत्थर सा दिल हमको कह तो दिया
पत्थरो पर लिखोगे मिटेगा नही...
क्या खूब गीत लिखते है
Sir dr. Vishnu Saxena ji-
आँख खोली तो तुम रुक्मिणी सी लगीं
बन्द की आँख तो राधिका तुम लगीं!
जब भी सोचा तुम्हें शांत एकांत में,
मीरा बाई सी एक साधिका तुम लगीं!
कृष्ण की बाँसुरी पर भरोसा रखो,
मन कहीं भी रहे पर डिगेगा नहीं।
रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा,
एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं।
तुमने पत्थर सा दिल हमको कह तो दिया,
पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं।
© आद. डा. विष्णु सक्सेना जी
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