चिर शांति जहां, है मौन अनंत।
जहां हर जड़ ही होता जीवंत।
जहां शीत लहर कंपकपाती है।
पर जीवन का निर्मल जल भी है।
हर श्वास, जीवन प्रमाण दे जाती है।
जिस चिर विश्रांति में प्रत्येक रात्री
मृत्यु और शिव गण तांडव करते हैं ।
वो धरती का अंबर कैलाश ही है
जहां शिव रह कर दम भरते है।
वो शमशानस्थ वो महाकाल।
वो नीलकंठ चिर अनंत विशाल।
वो साक्षी अकर्ता वो वीरभद्र।
भूती: अकंप: वो शांतभद्र।
सर्वस्व सत्वा अणु भूतकाल।
वर्गुण वो वो ब्रह्म वो ही त्रिकाल।
किर्तिभूषण कांत: महाकलभूत:।
वह नित्य सनातन सर्वस्व स्वरूप।
उस शिव का मैं क्या गुणगान करू।
मेरी क्या जुर्रत क्या हस्ती है।
वो मसान वासी विक्रांत: सर्वेश्वर है।
तृण समान तुच्छ निमेष हूं मैं ।
जिसकी जिव्हा भी शब्दों को तरसती है।
हे विश्वनाथ हे शशिशेखर, सर्वज्ञ: मेघ:
नहीं मांगता कुछ पर है प्रार्थना एक।
अपने चिरसत्य शिव सुंदर स्वरूप की।
तत्वित सुंगध से करदो ये जीवन अतिरेक।
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