लोग कहते मुझे ममता की मूरत हूँ मैं,
पहचान मेरी ये है कि औरत हूँ मैं ।
इक पुरूष की अर्धांगिनी ,उसकी पूरक हूँ मैं,
लोग कहते मुझे औरत हूँ मैं ।
अपने पिता की लाडली, उनकी परी,
उनकी दौलत उनकी इज्जत हूँ मैं ।
जिस माँ ने सिंचा, उसी का प्रतिबिंब,
उसी की ही तरह उसी की छवी औरत हूँ मैं ।
किसी की बहन, किसी की सखी,
तो किसी की शिक्षक हूँ मैं ।
हाँ देवी स्वरूप है कहते जिसे,
बस वही औरत हूँ मैं ।
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