Pratigya Jaiswal   (pratigya_jaiswal)
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Joined 17 August 2019


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Joined 17 August 2019
1 APR AT 3:04

तुम सुनो तो एक बात अर्ज़ है,
क्या तुम जानते हो की मुझपे तुम्हारा कितना कर्ज़ है?
मुफ़्त में ले जाते हो चैन मेरा,
कीमत चुकानी है, क्या ये याद दिलाना भी मेरा फर्ज है?
ख्वाबों में भी आते हो तुम बिन बुलाए,
क्या इजाज़त लेने में तुम्हें कोई हर्ज है?

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9 FEB AT 8:10

कभी कभी लगता है,
मेरी बैचानियों का कोई हल ही नहीं है।
सुकून क्या होता है ? ऐसा तो कोई पल ही नहीं है।

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16 JAN AT 16:45

एक दिन बैठूंगी तेरी बाहों में,
सांसों की हर इक साज़ तेरी सांसों से मिल जाने तक।
एक दिन खो जाऊंगी तेरी पनाहों में,
जिस्म के हर कतरे से तेरी खुशबू आने तक।
बिखरा हुआ सा लगता है तू मुझे ,
समेटूंगी मैं तुझे तेरे फिरसे जुड़ जाने तक ।
एक दिन बैठूंगी तेरी बाहों में,
तुझ जैसा हो जाने तक।

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15 OCT 2023 AT 5:42

कहते है मन जब तक नियंत्रण में हैं तब तक सब ठीक पर जब मन सीमाएं लांघ जाने के लिए मचलने लगे तो विनाश को निमंत्रण देता है। कभी कभी हम जो है वो क्यों है ऐसे प्रश्न आते है, हमारे पास जो है वो पर्याप्त होते हुए भी पर्याप्त नहीं लगता। ऐसा क्यों होता है की इच्छाएं कभी पूर्ण नहीं होती अगर वो इच्छा मर्यादित न हो। मर्यादाएं मनुष्य पर लगाई जाए तो उन्हें रोका जा सकता पर मन पर लगाई जाएं तो वो कब तक टिक पाती है? जो है उसी को जिंदगी क्यों मान लिया जाता है? क्या इच्छा करना गलत है?

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10 OCT 2023 AT 4:14

आसमान का चांद
और भी खूबसूरत लगने लगता है,
जब वो अपने वजूद से
थोड़ा थोड़ा घटने लगता है।

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31 JUL 2023 AT 2:15

कहने को मेरा ही है,
पर अपना ही यहां दुश्मन बन जाता है।
मेरा शहर अब मुझे
रास नहीं आता है।
मेरी खुशियों का मुझे अब
मोल चुकाना पड़ता है।
न जाने कैसा व्यापार चलता है यहाँ
अब हर कोई हिसाब रखता है।
मेरी कमियों को ये शहर
गुनाहों की तरह गिनता हैं।
टूटे ख्वाबों के टुकड़े ,
अब यहां कोई नहीं चुनता हैं ।
मेरा घर भी मुझे,
अब अपना नहीं लगता है।
मेरा शहर अब मुझे कुछ ख़ास,
रास नहीं आता है।

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25 JUN 2023 AT 21:20

अच्छा सोचने की सलाह देते देते,
खुद का अच्छा किया ही नहीं ।
लोगों को दूर करते करते ,
खुद से जुदा हुए कब जाना ही नहीं।
बातों को मन में ही रख के,
खुद में ही घुटते रह गए,
अकेलापन बेड़ियां कब बन गई ,
ये पता ही नहीं।

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19 JUN 2023 AT 1:16


कहते कहते रह गए ज़ुबान अब तक खुली नहीं,
सहमे सहमे रह गए हिम्मत अब तक बंधी नहीं ।
सारी गांठे सुलझा रहे थे देखा तो पहली ही खुली नहीं,
हाथों से फिसलता वक्त पूछता है दुविधा अब तक मिटी नहीं????

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29 MAY 2023 AT 5:36

तुम्ही मेरे माता, पिता भी तुम्ही हो,
तुम्ही मेरे बन्धु , सखा भी तुम्ही हो।
तुम्हीं को हो अर्पण ये व्याकुल मेरा मन,
तुम्हीं को हो मेरा ये पूर्ण समर्पण।
हे कृष्ण मेरे दाता, ओ मेरे विधाता,
तुम्हीं से हो मेरा सब जन्मों का नाता।
मेरे कर्मों को तुम सम्हाले ही रखना ।
हो एक ही मेरा धर्म तुम्हारा नाम जपना।
मैं बन जोगन , मैं बन जाऊं दासी ।
रहूं मैं हमेशा तेरे दर्शन की प्यासी।
न मांगू कोई सुख, न मांगू कोई कृत ।
मैं मांगू तो बस तेरे चरणों में अमृत ।
हैं चंचल ये नेत्र, है पुष्पों सी मधुता।
तुम्हीं हो जगत की सर्व सुंदर सुंदरता ।
तुम्हारी छवि हैं ये इस मन को लुभाती।
हो मेरे भी मन में एक तुम्हारी ही ख्याति ।

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23 MAY 2023 AT 6:12

किस प्रकार व्याख्या की जाए तुम्हारी,
ये कहने में हर वाक्य असमर्थ हैं।
प्रेम से मेल खाती है छवी तुम्हारी,
शब्दों से तुलना करे तो व्यर्थ हैं ।
तुम प्रियवर हो मेरे,
तुम ही आधार हो मेरा, तुम ही अर्थ हो ।
तुम्हें सौंपा गया है ईश्वर द्वारा मुझे,
तुम ही मेरा जीवन, तुम ही मेरा सर्वत्र हो ।

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