छोटे और छोटी,
मैं इतना बड़ा तो नहीं हुआ कि तुम्हें कुछ सिखा सकूँ,पर इस छोटी सी जिंदगी से लड़ते लड़ते उसके सामने डट के खड़े रहने का हुनर सीख गया हूँ । जहां भी रहना उस जगह से कुछ न कुछ सीखना जरूर क्योंकि जगहें जितना सिखाती हैं उतना इंसान नहीं सिखा सकता,हर जगह की खासियत को महसूस करके उसे खुद में आत्मसात करने का प्रयास करना।प्रतिकूलता स्वीकारना,यही वो समय है जब बुद्धि को विकसित होने का मौका मिलता है।हमेशा प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए तैयार रहना क्योंकि जो प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए तैयार रहता है उसी के लिए परिस्थितियां अनुकूल होती हैं। कभी हारने से डरना नहीं पर जीत के लिए संघर्ष जरूर करना और हां संघर्ष आया हुआ नहीं स्वीकारा हुआ होना चाहिए।अगर कहीं अधिक समय तक टिकना हो तो हमेशा साध्य और साधन दोनों पवित्र चुनना।कभी कृतघ्न न होना कृतज्ञ रहना,यही फर्क है आदमी और इंसान में । हमेशा हंसते रहना क्योंकि ये हंसी ही तो है जो हमें जानवर से अलहदा पहचान देती है।ये सोचकर काम करना कि वित्त मेरा है न कि मैं वित्त का ,ये मानते रहोगे कि वित्त मेरा तो वित्त तुम्हारे पीछे भागेगा और जैसे ही ये माना कि मैं वित्त का तुम खुद वित्त के पीछे भागने लगोगे।
दूसरों पर आक्षेप के बजाय अपनी भूल स्वीकार करना सीखना। किसी से भूल भी हो तो उसे क्षमा कर देना और किसी के लिए कुछ करना तो निःस्वार्थ वृत्ती से।
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