भर कर एक चुटकी सिंदूर की मांग में
वो ले गया घर की रौनक घर वालों के ही सामने-
तू बन जाना मेरी मांग का सिंदूर,
मे तेरे हाथों कि अंगूठी बन जाऊँगी,
तेरे ग़म बहेंगे मेरी आँखों से,
मे तेरे होंठों कि हंसी बन मुस्कुराउंगी..!!
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"सिंदूर" बस एक रंग ही तो है,
क्यों बड़ी सिद्दत से तरसती रह गयी ये मांग
तेरे हाथों रंग जाने को !-
इससे अधिक और क्या होगा,
दुनिया मे सम्मान हमारा,
चमक रहा हुँ माथे पर मै,
बनकर के अभिमान तुम्हारा,
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प्रिय अर्धांगिनी को समर्पित :-
12/05/2020
शब्द हीन हूँ व्यक्त करूँ क्या
कैसी तेरी प्रीत प्रिये,
सिले हुए होठों पर तुमने
फिर लौटाया गीत प्रिये,
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क्या सिन्दुर के ही रिश्तों का मोल होता है।
दिल के रिश्तों का कुछ नहीं ।।
दुनियां में लोग सिन्दुर के रिश्ते ,
को ही क्यों पवित्र बोलते हैं ।
और दिल के रिश्तों को ,
क्यों गंदे नजरों से देखते हैं ।।
सिन्दुर के रिश्ते को ही क्यों नाम मिलता है ।
और दिल के रिश्ते को ही क्यों बदनामी।।
क्या सिन्दुर का रिश्ता ही सबकुछ है ,
दिल का रिश्ता कुछ नहीं ।।-
गहनों जेवरातों का,
तनिक मोल नहीं मुझे !
सोलह श्रृंगार का भी,
रत्ती भर मोह नहीं मुझे !
❣️
बस इतनी सी आस है,
तुमसे ठाकुर साहब !
तुम्हारे हाथों से समर्पित हो,
वो सुर्ख लाल सिंदूर मुझे !!-
सिंदूर का इस्तेमाल कुछ इस तरह करती हूँ
लाल स्याही बना कर तुझे ख़त लिखती हूँ
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श्रृंगार का तो पता नहीं है मुझे पर ठाकुर साहब !
आपके द्वारा भरा गया सिंदूर मेरी मांग में जंचेगा बहुत !!
❣️-
सुनो,
पिया मुझे उपहार,
बहुमूल्य सिंदूर वाला चाहिए !
♥️
सुना है,
सोलह श्रृंगार फीके है,
इस सुर्ख लाल सिंदूर के आगे !!-