मैंने सीखा नहीं हर रस्म निभाना मुहब्बत का वफ़ा से शुरू होकर वहीं दफ़न हो जाता हूँ जो हूँ मैं वही दिखता हूँ तो छुपाऊँ कैसे अब जो इस बात से नाराज़ है तो मनाऊँ कैसे।
कोई जैसे चाहे वैसे रंग दे.... वो 'तस्वीर' नही हूँ मैं..!! कोई जैसे चाहे वैसे बदले..... वो 'तक़दीर' नही हूँ मैं..!! अपनी तस्वीर सजाई मैंने है..... तक़दीर बनाई मैंने है..!! मुझ पर हक केवल मेरा है..... कोई 'जागीर' नही हूँ मैं..!!