ना जाने कब वो शरीक हो गये दिल के जज़्बातो में,
नाम उनका हीं आता है अब तो हर बातों में।-
शरीक हो के तेरे गम में
तेरे इश्क़ में शहीद हो जाऊँ
मै तो शुरू भी हुआ था तुझसे
आ तुझ में ही खत्म हो जाऊँ।-
नीलाम किया था दिल अपना ये सोचकर हमने
के बोली लगाने वालों में शायद तुम भी शरीक़ थे-
अमानत अब तुम्हारी है,तुम्हारा हो चुका ये दिल
कि जब नज़रें इनायत हों तुम्हें ही पेश कर देंगें
ख़ुदाया कर करम इतना ,तुम्हें भी संग ये भाए
शरीके ज़िंदगी हो तुम,ख़ुशी जीवन में भर देंगें-
शरीक थे जो गुनाह में मेरे
सज़ा मिली तो मुकर गए हैं
शरीफ़ ख़ुद को कहा करे थे
दिखा शराफ़त निकल लिए हैं-
चले थे महफ़िल मे शरीक होने।
पर मैं उनमें शरीक।
वो मुझमें शरीक।
महफ़िल गई भांड़ में।-
वक़्त की राह पे चलते हुए
नामालूम ऐसा क्यूँ लगता है..
जैसे हर वक़्त तिरी तस्वीर,
तिरी साँसें शरीक़ हैं मेरे वजूद में,
दुआ शरीक हो जैसे के इबादत में।
© #Veenu"✍-
नही होना है सिर्फ तेरे दो पल के,
खुशीयों में शामिल मुझे।
आओ अपने हर ग़म का भी,
साथी बनालो मुझे।
बेशक् तुम्हारी ज़िन्दगी में,
बहुत से लोग शामिल होंगे।
मगर अपना शरीक-ए-हयात,
फक्त बनाना मुझे।-