।। बाकी है ।।
एक अरसे से जो कहनी थी , वो दिल की बात बाकी है,
मिलो चाहे ना हर दिन तुम , संडे की मुलाकात काफी है।
खामोशियां बन जाती हैं , अल्फाज तेरे मेरे बीच की,
इन खामोशियों के जरिए , करना इजहार बाकी है ।
है दिल में जो मेरे बात , वो कह देती हूं पन्नों से ,
के पन्नों पर लिखी हर बात को , कर दूं तुम्हें इज़हार बाकी है ।
तुम्हें सोच कर लिख दूं मैं , कुछ ऐसा न सोचा था ,
मगर ! छुपे एहसास को होठों से , कहना यार बाकी है ।
तुम्हें देखा तो ऐसा लगा , कि जैसे तुम हो मेरे जो,
कह दे," तेरी जुल्फों के साए में मुझे मिलती सुकून काफी है"।
सुना है ! जल्द ही चले जाओगे तुमक्ष, दूर यूं मुझसे,
कहूं या ना कहूं जो दिल की , बात तुमसे कहनी बाकी है ।
अधूरी हूं मैं तेरे बिन , मैं कैसे कहूं यह तुझसे ?
कि अधूरेपन की लंबी सी , ये शायद रात बाकी है ।
कि दिल में बस चुके हो तुम , तुम्हें ना भूल पाऊंगी ,
कि जब भी होगी दिल की बात , तुम्हें मैं याद आऊंगी।
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