::--::--::-- रात ,चांद और वो --::--::--::
आदत सी हो गई है उनको, हमें देखने की,
हम भी ख़बर रखते हैं, उनके हर एक आहट की।
उनको,
हमें देखे बिना चैन भी तो नहीं आता,
बातें करने की,
करते हैं कोशिश हजा़र मगर करना नहीं आता,
आंखें भी तो ऐसी हैं कि बस निहारते रहो,
ये बात उनके मन की है जो उन्हें जताना नहीं आता,
हमें भी ....
आदत सी हो गई है ,उन्हें शर्माकर देखने की,
हम भी ख़बर रखते हैं, उनके हर आहट की।
अच्छा लगता है.....
एक ही छत से उनका ,और दीदार चांद का करना,
जैसे कर लिया हो तय , रोज रात छत पर मिलना,
बातों का क्या है वो , आंखों से कर लेते हैं हम ,
आंखें कहती हैं ......
जैसे अब तो हमें इन , आंखों में ही डूब के है मरना,
रात को....
हम भी बावली बनी हुई हैं, चांद देखने की,
हम भी खबर रखते हैं ,उनके हर आहट की ।
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