भीगे झील के किनारे...
यह गीले अलसाए से एहसास..
पाँव में छुपकर पानी से इश्क़ फरमाते है,
और शाम की ठंडाई में...
नहाये कुछ जुगनू और चाँदनी...
हमारी शरारतों पर लहरों को उकसाते हैं,
जैसे उनसे कहते हों,
जाओ एक पहर उनके पैरों के तले गुज़ारो...
कम से कम उनके इश्क़ को ही निहारो..
इसलिए हम दोनों अक्सर...
गीले रेत का टीला,
अपने नाम का बना लेते है!
क्या पता हमारी गैर मौजूदगी में,
कोई अपनी कहानी बुन ले...
इस शाम में झील के किनारे,
कोई अपनी ज़िंदगी गुज़ार ले..!
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