अपनी इस कहानी में मैं तुझसा क्यों बन बैठा,
खुदका जो था मेरा, वो बयां क्यों ना हो सका।
दुआ करी थी जो पाने की,
उसे क्यों पीछे छोड़ आया हूँ।
की नए रास्तो की ख़ोज में निकला हूँ,
पुराने रास्तो से रिश्ता क्यों तोड़ आया हुँ।
ख़ोज में निकला हूँ मैं खुदकी,
ख़ुदको ढूंढ के ही अब वापस आऊंगा।
उन उनकाही बातो का हिसाब,
फिर किसी और दिन चुकाऊंगा।
क़िताब रखी है मैंने हाथ में,
अपने सारे जज़्बात इसी में छिपाऊँगा।
जो ना मिला कभी मैं,
तो मेरी इस क़िताब को पढ़ लेना।
कही मिलू या ना मिलू मैं,
अपने अल्फाज़ो में जरूर मिल जाऊँगा।
जो अगर खो भी गया मैं,
तो भी इन अल्फ़ाज़ों में अपनी दुनियां छिपाऊँगा।
लिखता हूँ वो आखिरी अल्फ़ाज़,
जो जाने से पहले तुझे बताना बाकी है।
दुआ मांगी है तेरे नाम की,
अब बस तेरा मुस्कुराना बाकी है।
-