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मैं एक ही "शब्द" को कितने बार पढ़ती थी,
मैं हर "रात" को "सुबह" करती थी...!!-
नाराज सा हैं,
बेबुनियाद सा हैं,
इस कदर इश्क़ की आंखों में इश्क़ बर्बाद सा हैं!!-
इक दौर का हिस्सा कमाल रखा है.
इश्क का नाम हमने बवाल रखा है.
खुद के लिए ही जाल बिछा रखा है.
किस्सा तेरा कोई सभांल रखा है.
कौन बताये तुम्हें हमने आज भी
अलमारी में सिर्फ एक रुमाल रखा है.-
चलो कुछ गलतियाँ सुधार लें,
इस मोहब्बत से थोड़ा समय उधार लें ,
कब से मशरुफ हैं एक दुसरे को चाहने मे,
बरसों गुजार दिये एक ल्फज् (love) का मान बचाने मे ,
चलो अब इस वादे को तोड़ दो,
ना करो फिक्र मुझे तड़पता छोड़ दो,
सुना है बिछड़ने से रिस्ता मजबूत होता है,
कद्र उसी की होती है जो खुद से दूर होता है.
आज हम भी वही करें और रूठ जायें,
कि कुछ पल के लिये तेरा मुझसे नाता टूट जाये,
शायद इस ल्फज् में कुछ वजन आ जाये,
कि रिश्तों में कुछ अपनापन आ जाये,
शायद हो जाये ये अधूरापन कम,
शायद "रवि" ही हो फिर तुम्हारा हमदम,
तो चलो कुछ पल के लिए चाहत को मार लें,
इस मोहब्बत से थोड़ा समय उधार लें-
मिले ना मिले।
जिदगी_ तेरा _ऐ _किरदार _कल शायद
मिले ना मिले । मिला _लो_ हाथो _से _हाथ कल शायद
मिले ना मिले।
मत रूठो दोस्तो से यार दोस्त कल शायद
मिले ना मिले। जिलो _आज_ को यार आजके पल कल
शायद मिले ना मिले।
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खुशियाँ बेचते है हम.
थोड़ी सी खरीदारी तुम भी कर लेना
अपने गम गिरवी रख के.-
सब्र रखो मै सारी यादें समेट कर ले जा रहा हूं,
तुम फिक्र ना करो मै तुमसे बहुत दूर जा रहा हूं !
अब जिक्र ना करना कभी मेरा अपने चाहने वालो से,
मैं अपनी जान तुम्हारे पास गिरवी रख कर जा रहा हूं !!-
जब तक पता लगा
वो रूठ चुका था।
साथ हमारा छूट चुका था।
पर करति भी क्या ,मैं बेचारी
मेरे हिस्से का जखीरा
अब तो ,लूट चुका था।।
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