क्या कहूं उनके तारीफ- ए - सूरत को
हमारे अल्फ़ाज़ कम पड़ जाते हैं उनकी सादगी देख कर !!-
तेरी सादगी ने इस तरहां थामा हाथ मेरा
मैंने हुस्न को कभी मुड़ के देखा नहीं-
उसने अपने चेहरे को छुपाए रखा था,
किस्से सब खुल गए जो बनाए रखा था।
कोई दीवाना आंसू गम के बहाए रखा था,
इश्क़ के सुलूक ने उसे हराए रखा था।
हुस्न से नहीं होती मोहब्बत बताए रखा था,
वो क्यूं था जो सारे जुमले सुनाए रखा था।
सोच ने दुनिया में सबको चौपाए रखा था,
सच से अच्छा झूठ में खुद को पाए रखा था।
वो इस अंदाज़ में खुद को समझाए रखा था,
कि बढ़ते गम में भी खुद को हसाए रखा था।
जिस्म से न हो इश्क़ ये ज्ञान पाए रखा था,
कैसे कबूल करे इश्क़ जो सब छुपाए रखा था।
होठों पे उसके चेहरे को देख मुस्कुराए रखा था,
इश्क़ जो उसको आता था उसने बताए रखा था।
हारा की जीता ये वक्त ने दफनाए रखा था,
सादगी दिखावे की नहीं अपनाए रखा था।
वो था जो सब कुछ मोहब्बत में जलाए रखा था,
सपने ही नहीं जलते कुछ शर्म पहनाए रखा था।-
आग लगाना मेरी फ़ितरत में नही है
मेरी सादगी से लोग जले तो मेरा क्या कसूर-
अब चाहने लगे हैं कुछ लोग बनावट को,
शायद भूल गए कि, मोहब्बत आज भी सलीके और सादगी से ही होती है।-
तेरे इस सादगी को देख कर ये उलझन है
कौन सा फूल चुनु तेरी बंदगी के लिए-
कैसे ना हो इश्क उनकी सादगी पर
ए-खुदा.ख़फा हैं हमसे मगर करीब बैठे हैं-