ग़म ज़िन्दगी के हों दर-बदर, इक शाम ऐसी मिले कहीं जहाँ आके वक़्त हो रुक गया, वो मक़ाम मुझको अज़ीज़ है ये नज़र नज़र का सफ़र है जो, यूँ ठहर ठहर के चला करे न पलक गिरे, न तो लब खुलें, ये क़याम मुझको अज़ीज़ है
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