चांद तुम छिपा मत करो
तुम छिप जाओगे तो मैं किसको देखूं
मेरी सांस फूलने लगती है
मेरी मम्मी मेरे साथ क्यूं नहीं है
कितना कठिन होता है एक कविता लिखना
ये मूर्ति खरीदने वाला क्या जानें
मगर ये दुनिया वाले खच्चर
मुझे समझते क्यूं नहीं है
न बच्चे का रोना, न फूल का चमकना, न समंंदर का सोना
छोड़ो हटाओ, भाड़ में जाएं
मगर ये सच इतना कड़वा क्यूं होता है
क्या बीतती होगी उसे चायपत्ती पर जो जल कर सुवाद देती है
ये सफेद बादल कालें क्यूं होतें है
मेरे पास मेरी पागल कविता के सिवा कुछ नहीं
मैं कायर हूं या हरामखोर
जीने से डरता हूं, आंसू पीने से डरता हूं
ये आंसू इतने धीरे धीरे क्यूं सरकते हैं
क्या जिंदगी भर मेरी तरह
मेरी कविताओं को कोई नहीं समझेगा
मगर मैं करता भी क्या चांद को चुनने के अलावा
सूरज की चौंध मुझसे देखी नहीं जाती
मेरे पास कोई भी प्रेमिका नहीं है
जिसके सीने से मैं अपना कान चिपकाकर सो सकूं
मेरा चिल्ला चिल्ला कर गला बैठ गया है
काश़ ये सामाजिक बादलों को कोई भस्म कर दे
चांद तुम मत छिपा करो
तुम ही हो मेरी आखिरी उम्मीद
नहीं तो मै मर जाउंगा
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