कर्म लिखता है, वक़्त हिसाब करता है,
उम्मीद और सज़ा साथ चलते हैं।
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Writing luck by Chance.
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गुमनामी
अनदेखी राहों का मुसाफ़िर,
बिना नाम, बिना निशान।
भीड़ में खोया एक साया,
पहचान से अनजान।
कोई पदचिह्न नहीं रेत पर,
कोई कहानी नहीं अधरों पर।
गुमसुम हवा का एक झोंका,
अनंत सागर की लहरों पर।
अज्ञात गलियों का राही,
अनबोली भाषा का गीत।
स्मृतियों के धुंधलके में डूबा,
अतीत और भविष्य से परे एक मीत।
न कोई आरंभ, न कोई अंत,
बस एक मौन उपस्थिति।
विश्व के रंगमंच पर,इश्कबाज,
उभरी एक अदृश्य शक्ति।-
रेत के हस्ताक्षर
ख़्वाब, ओ बहुरूपिया, किसके हुए कभी?
पल भर की रंगीन तितली, बैठी न एक छवि।
आँखों के दलदल में उगते, बिन बुलाए मेहमान,
सुबह की पहली किरण से, खो देते अपना निशान।
जैसे हथेली पे फिसले, झरता हुआ रेत का कण,
बंधनों से अनजान, ये उड़ते हुए निर्झर क्षण।
किसी के माथे की शिकन, किसी के होंठों की हँसी,
बनकर भी मिट जाते हैं, ये कैसी बेबसी?
वो महल जो रातों में, तारों की ईंटों से जुड़ा,
दिन के उजाले में देखो, तो बस एक खाली कुआँ।
वो नदियाँ जो सपनों में, बहती थीं मीठे सुरों में,
जागते ही सूख जाती हैं, दबी हुई आहों में।
ये किसी के सगे नहीं, न सुख के, न दुख के साथी,
अपनी ही धुन के राही, अनोखी इनकी बाज़ी।
कभी दिखाते हैं मंज़र, जो सच से कोसों दूर,
कभी छुपाते हैं वो सच, जो आँखों में है भरपूर।
इनकी कोई नींव नहीं, न कोई टिकाऊ डोर,
ये तो बस मन के धागे हैं, उलझे हुए बेजोर।
इश्कबाज़ मन के राही, न कर इनका तू अभिमान,
ये तो हैं रेत के हस्ताक्षर, मिट जाएँगे हर हाल।
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ज़िंदगी शायरी हो गई
ज़िंदगी शायरी हो गई,
ना छंदों की मोहताज रही,
ना बहर की कोई बंदिश रही।
जैसे एहसास किसी टूटे काग़ज़ पे बहते हों,
जैसे हर साँस में कोई मिसरा कहता हो।
हर सुबह इक नया शेर बन जाती है,
धूप जैसे कोई काफ़िया निभा जाती है।
और शाम?
वो तो ग़ज़ल की रदीफ़ बन
हर रोज़ इंतज़ार में ढल जाती है।
दिल की बातें अब अल्फ़ाज़ नहीं माँगतीं,
चुप्पियाँ ही अब शायरी बन बोलती हैं।
कभी हँसी में बयाँ होती है कोई रूबाई,
कभी आँसुओं से सजती है दर्द की नज़्में।
कोई दीवान नहीं, कोई कवि नहीं,
फिर भी हर मोड़ पर एक कविता मिलती है।
ज़िंदगी शायरी हो गई है इस क़दर इश्कबाज,
कि अब जीना भी कोई अदबी महफ़िल सी लगती है।-
तारे सब चाँद के नहीं होते
चाँद की आभा में खोए नयन,
भूल गए तारों का भी वयन।
सोचा हर चमक उसी की है छाया,
हर रौशनी की वही है काया।
पर देखो तो ज़रा ध्यान से,
अनगिनत दीप जलते गगन में।
हर एक की अपनी अलग कहानी,
अपनी ही ज्योति, अपनी रवानी।
कुछ अकेले ही दमके प्रचंड,
किसी की किरणें शीतल मंद।
नहीं किसी के वो अनुचर मात्र,
स्वयं में हैं अद्भुत, स्वतंत्र गात्र।
जीवन के पथ पर भी यही सत्य,
हर चेहरे की अपनी है भव्यता।
किसी एक की न हो मोहताजगी,
हर आत्मा में है अपनी ताजगी।
मत भूलो तारों का विस्तृत आकाश,
हर बिंदु का अपना है प्रकाश।
चाँद अपनी जगह, सुंदर महान,
पर तारों से ही है जग का मान l
चाँद अपनी जगह, सुंदर महान,
पर तारों से ही है जग का मान।-
कौन यहाँ समझाए किसको ?
कौन यहाँ समझाए किसको,
मन की उलझन,
कैसी किसको?
अपने-अपने घेरे सब हैं,
अपनी-अपनी बातें कब हैं।
अनसुनी आवाज़ें कितनी,
अनकही हैं रातें कितनी।
ज्ञान का दीपक लिए फिरते,
पर अज्ञान में ही हम गिरते।
सत्य की राह दिखाते सबको,
खुद ही भरमाए फिरते कब के l
नदी किनारे प्यासे बैठे,
मोती गहरे, हाथ हैं छोटे।
समझाने की चाहत कैसी,
जब अपनी ही डोर है कच्ची जैसी।
कौन यहाँ समझाए किसको,
जब हर कोई है अपनी धुन में l
बस बहती जाती है दुनिया, इश्कबाज
अपनी ही अनसुनी कहानियों कहकर l
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अनमापा वैभव
नहीं तौला मैंने कभी,
कितना पाया इस जीवन में,
न ही इच्छाओं की गठरी बाँधी,
हर पल के अभिनंदन में।
जो साँस मिली, वह अनमोल निधि,
हर धड़कन एक नया गान,
क्षितिज असीम, पथ अनजाना,
हर अनुभव मेरा निधान।
न तारों की गिनती की मैंने,
न सागर की लहरें गिनीं,
हर सुबह की सुनहरी आभा,
एक अनकही कहानी बुनी।
जो फूल खिले, उनकी सुगंध मेरी,
जो रवि चमका, वह प्रकाश मेरा,
यह ब्रह्मांड की खुली हथेली,
हर कण में अंश है मेरा।
कभी न चाही स्वर्णिम मुकुट,
न सिंहासन का अभिमान,
मिट्टी की यह कुटिया मेरी,
इसमें संतोष का जहान।
जो प्रेम मिला, वह अमृत कलश,
हर बंधन एक पावन धागा,
रिश्तों की यह अनमोल माला,
हर मोती अनुराग का जागा।
न शिकवा किया अँधेरों से,
न रोशनी का किया बखान,
हर रात के गर्भ में पलती,
एक नई सुबह की मुस्कान।
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“संभावनाएँ धूल में नहीं,
दृष्टि में छिपी होती हैं,
जो देख सके दिशा,
वही रचता इतिहास की रेखा।”-
इतनी तेज धूप में
देखो तो कैसा कहर है छाया,
सूरज ने जैसे आग बरसाया।
धरती तपती, अंगारों जैसी,
हर सांस लगे अब मुश्किल कैसी।
लू के थपेड़े ऐसे आते,
जैसे हों शोले दहकते जाते।
पंछी भी देखो पेड़ों में छिपे,
मानो डर से हों सहमे से चुप।
राहों पे पसरी है वीरानी,
जैसे रूठ गई हो जिंदगानी।
पानी भी अब तो भाप बने,
क्या प्यास बुझाए, क्या चैन मिले?
यह धूप नहीं है, सितम है कोई,
हर चेहरे पर है शिकन बोई।
कब थमेगा यह तपन का दौर,
कब ठंडी हवाएं लाएंगी भोर?
मगर इस तपिश में भी हिम्मत है,
जीने की हरदम चाहत है।
आएगा फिर से सुहाना मौसम,
मिट जाएगा यह दुख का आलम।
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