RAMAN Bhagat   (रमन इश्कबाज़)
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Joined 15 December 2017


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YESTERDAY AT 0:58

आलनें तो बहुत है जहान में
ग़र साथ देने वाला हो
तो समय कट जाता है
आसानी से धरती और असमान में l

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26 APR AT 23:24

बातचीत ज़रूरी है लेकिन
ये भी बता दो तो करे किससे l
यूँ ही तो महफ़िलें नहीं सजतीं
बताओ ज़ाम पे ज़ाम टकराए किससे?

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25 APR AT 23:19


रात बीती मगर धीरे-धीरे
इश्क़ की उल्फ़त लगी धीरे-धीरे
इज़हार को भी तो कोई बात चाहिए
अभी आदत तो लगने दीजिए धीरे-धीरे l



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24 APR AT 23:48

रूठना और मनाना इंसान का स्वभाव है

और जो सबके बिगड़े काम बनाए वो भगवान है I

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24 APR AT 23:10

माँ शब्द कोरे कागज़ पर उकेरा हर्फ़ सा है l
इक बार जो लिखा गया वो फिर मिटा न है
कोशिशें तमाम हुई मिटाने की ग़र इश्क़बाज
इसके बाद जो भी लिखा गया वो माँ न है l

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22 APR AT 21:49

प्यार और बिंदी उम्र के साथ बड़े होते जाते है l
और ज़िंदगी के दिन उतने कम होते जाते है l

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22 APR AT 21:23

ज़माने में बैसे तो बिछु जैसे बहुत है इश्क़बाज l

पर तेरे जैसा डंक का मर्ज़ हर किसी के पास नहीं होता l

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21 APR AT 13:04

जीतते जीतते हार जाना यही तो कमाल है अपना I
काश तुम भी हार जाते इश्क़ में, हमे मलाल न होता इतना l
रमन इश्क़बाज

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21 APR AT 12:31

जीतते जीतते हार जाना यही तो कमाल है अपना l
काश तुम भी हार जाते इश्क़ में, हमे मलाल न होता उतना l

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21 APR AT 2:34

उकता सी गई है ये दूरियाँ
हमे भी थोड़ा रुला गई है ये दूरियाँ
थोड़ा सा वक़्त मिल जाता ग़र इश्क़बाज
तो क्या घट न जाती ये दूरियाँ ?

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