सपनों का सफ़र और घर की पुकार l
बारिश की बूँदें, खिड़की से झाँकती हैं,
शहर की धुंध में, यादें टकराती हैं।
गाँव की वो गलियाँ, अब दूर कहीं,
रोटी की तलाश में, हम भटकते यहीं।
नींदों में कभी, बचपन की किलकारी,
जागते ही मिलती, ज़िम्मेदारी भारी।
चेहरे पे मुस्कान, पर दिल में है पीड़ा,
हर शाम ढलती, लिए एक नई क्रीड़ा।
ख्वाबों के परिंदे, उड़ते हैं आकाश में,
दफ़्तर की मेज पर, कैद हैं हर साँस में।
फोन की घंटी, जोड़े है रिश्तों की डोर,
पर सच है कि अब, वो पहले जैसा न शोर।
कभी सोचता हूँ, लौट जाऊँ उन्हीं राहों पर,
जहाँ सुकून था, उन कच्चे मकानों पर।
पर शहरों की चकाचौंध, खींचती है अपनी ओर,
इश्कबाज़ ज़िंदगी कहती है, बस चलते रहो और।
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Writing luck by Chance.
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सत्य की अग्नि
सत्य की भूख सबको है यहाँ,
पर जब परोसा जाए, कड़वा लगे जहाँ।
कुछ को भाए इसका फीका स्वाद,
बहुतों को लगे ये तीखा, बर्बाद।
जो बोले सच्ची बात, राह दिखाए सही,
वो स्वार्थी को सदा खटकता यहीं।
मतलबी की दुनिया में, वो लगे पराया,
खुदगर्जी की आँखों में, लगे वो कड़वा साया।
पर सत्य है सूरज, चाहे आँखें मूँद लो,
उसकी किरणें तो भीतर मिलेंगी, ढूँढ़ लो।
जो सच्ची राह पर चले, चाहे अकेला हो,
उसकी रौशनी से ही तो जग में उजाला हो।
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किस्मत एक दरवाज़ा खोलती है,
लेकिन उस दरवाज़े से कौन सी दुनिया देखनी है,
ये तुम्हारी सोच का नज़रिया बताता है।
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ज़िन्दगी एक खूबसूरत सफ़र है l
और ज़िम्मेदारी इसकी
मंज़िल तक पहुँचने का नक्शा है।
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जो तकते बस भाग्य की राह,
वे भ्रम में जीते हैं,
कर्मों की ताक़त से ही तो,
पत्थर भी पानी पीते हैं।
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"जरूरतमंद की मदद करना इंसानियत है,
पर यह पहचानना भी जरूरी है कि
हर हाथ फैलाने वाला भूखा नहीं होता।"-
पिता: मेरे उत्थान का आधार l
दुविधा के काले बादलों में, जब घिरा मेरा संसार था,
अंधेरों से डर लगता था, न कोई मेरा यार था।
तब एक आवाज़ गूँजी, "बेटा, हिम्मत मत हारना",
वो आवाज़ थी पिता की, जिसने दिया मुझे संवरना।
बचपन की वो पगडंडी, जब कच्ची थी मेरी चाल,
आपने ही तो चलना सिखाया, बनकर मेरी ढाल।
गिरते-पड़ते सीख रहा था, दुनिया के सब कायदे,
आपकी आँखों में चमक थी, मेरे छोटे-छोटे फायदे।
संस्कारों की नींव रखी, ज्ञान का दीपक जलाया,
हर छोटे-बड़े फैसले में, सही राह दिखलाया।
जब लगता था सब मुश्किल, हर सपना था धुंधला सा,
आपकी एक मुस्कान से, मिट जाता था हर फाँसला।
कभी डाँटकर सिखाया, कभी प्यार से समझाया,
जीवन के हर इम्तिहान में, मुझे तैयार कराया।
सीखा मैंने आपसे, हर दर्द को मुस्कुरा कर सहना,
असफलता से भी सीखकर, आगे बढ़ते रहना।
नाजों से पाला-पोसा, हर ज़रूरत पूरी की,
अपनी ख्वाहिशें मारकर, मेरी दुनिया रंगीं की।
वो कटी-फटी चप्पलें, वो पुरानी कमीज़ें,
आपकी आँखों में झलकती थीं, मेरे लिए नई उम्मीदें।
छोटे-से गाँव की गलियों से, बड़े शहर तक का सफर,
हर कदम पर आपका विश्वास, बना मेरा हमसफर।
जब-जब थका हारकर मैं, आपकी प्रेरणा ने उठाया,
मेरी मंज़िल की राहों को, आपने ही तो सुलझाया।
साधारण से जीवन को, आपने असाधारण बनाया,
अपनी मेहनत से ही, हर स्वप्न सच कर दिखलाया।
वो देर रात तक जागना, वो पसीना बहाना आपका,
मेरी सफलता की कहानी है, ये हर पल का तकाजा आपका।
आज जब सुविधा की धूप में, मैं सुकून से बैठा हूँ,
तो उस संघर्ष की कहानी, आपकी आँखों में पढ़ता हूँ।
आपके दिए हुए संस्कारों से, ये जीवन जगमगाता है,
आपकी शिक्षा का ही असर, जो हर कदम रास्ता दिखाता है।
पिता, आपके बिना मेरा, ये उत्थान अधूरा है,
आप ही मेरे जीवन की, सबसे सुन्दर और सच्ची परिभाषा है।
आप सिर्फ पिता नहीं, मेरे गुरु, मेरे दोस्त, मेरे भगवान हैं,
आपके प्यार और त्याग पर ही, टिका मेरा सारा जहान है।
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समय की रेत
हथेली तब भी छोटी थी, हथेली अब भी छोटी है,
पहले खुशियाँ बटोरने में चीजें छूट जाती थीं,
अब चीजें बटोरने में खुशियाँ छूट जाती हैं!
वही आँगन, वही मिट्टी, पर बदल गया है रंग,
पहले दौड़ते थे बेफिक्र, अब चाल में है जंग।
वो कागज़ की कश्ती, पानी में बहती थी,
अब सोने की नाव भी, किनारा ढूंढती है।
मासूमियत की चादर ओढ़े, नींद आती थी गहरी,
चिंताओं का बोझ अब, पलकों पर है ठहरी।
गुड़हल की लाली में, बचपन था महकता,
आज महंगे इत्र भी, वो खुशबू न देता।
कभी एक खिलौना पाकर, दुनिया मिल जाती थी,
आज महलों की चाहत में, रूह भी कतराती है।
काश वो हथेली फिर से, उतनी ही छोटी हो जाए,
जहाँ खुशियों का मोल, सिर्फ एक मुस्कान पाए।
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शीर्षक: “चाहत और कर्म का उजाला”
प्रयास हो बस इतना हमारा,
कि कर्म बने पूजा, न कोई बहाना।
हर एक कदम, ईश्वर की नज़र में,
ऐसा हो कि शिकायत न हो ज़माना।
सुबह की पहली किरण में, ये संकल्प जले,
मन के दीपक में सच्चाई के तेल पले।
रिश्ते न तौलो घड़ी की सुई से कभी,
वो तो चाहत में ही पनपते हैं सादगी से अभी।
वक़्त नहीं, बस दिल की ज़रूरत होती है,
जहां चाह हो, वहां दूरी भी हसरत होती है।
दो पल का साथ भी अनमोल बन जाए,
अगर निभाने की नीयत में इबादत होती है।
तो चलो, आज से ये प्रण करें,
कि रिश्तों में शर्त नहीं, श्रद्धा भरें।
कर्म ऐसे हों कि सुकून दे आत्मा को,इश्कबाज़
और दोस्ती ऐसी, जो याद रहे रब को।
— ✍️ रमन इश्क़बाज़-