परितोष सर आप हमारे लिए बोहोत खास है
आप शायरियों के कोच है
We always love you sir...
परितोष सिर्फ एक नाम नहीं एक सोच है आप मौसम की वह बारिश नहीं बरसात की पहली बूंद वाली औस है NR-
एक लड़का था
जब आँखों में गहराई थी
जब हल्की हल्की दाढ़ी आयी थी,
एक लड़की थी
जब पहली बार देख के वो शरमाई थी
जब सर्द मौशम की तरह अलसाई थी
जब दोनों पहली बार सारी रात जागे थे
जब नज़र मिलाने से भागे थे
जब इश्क में वो सबसे आगे थे
तब से अब में कितना कुछ बदला है
पर वो झल्ली वैसी ही है
वो आज भी पगला है-
बहुत सी शिकायतें है न मुझसे.?
छोड़ के जिस पल जाऊंगी...
ये शिकायतें भी अच्छी लगेंगी
और याद भी बहुत आऊंगी
पर लौट के नहीं आऊंगी...
दिल के हाथों मजबूर हूं..
वरना किसी से पानी भी नहीं लेती
तुमने तो फिर भी गहरे जख्म दिए थे...
और मैंने हंस कर ले लिए थे ।-
वोह भी क्या दिन थे,
जब घड़ी एकाद के पास
होती थी और वक़्त सब के पास......!!!!-
Merii khushi Ka thikana dhund raha Hun...
Zindagi ke is Safar mei toh har ek Ghamo Ke manzar se guzra Hun..
Halat ki maar toh har kadam is kadar padi ke Khushi ka thikana dhund Raha Hun....
Aye zindagii tere yeh safar mei khud ke sath kahiyo ko khoya Hun.
Na Jane phir kyu merii andekhi Khushi ka thikana dhund Raha hun..-