धूप-छाँव से क्या फर्क ,
मैं भूँख से लड़ रहा ।
समय था वैसे पढ़ने का ,
ढेर कूड़े का चड़ रहा ।
पेट भर लिया जैसे तैसे ,
रह गया कुपोषण ।
हाथ पैर तो चलते हैं ,
सूख रहा है धड़ ।
पसलियाँ दिखतीं सारी ,
जैसे नहीं है खाल ।
पैर हो गए पतले-पतले ,
टेढ़ी हो गई चाल ।
चेहरा नहीं दिखता मेरा ,
दिखते पिचके गाल ।
-Read caption.
-