माना कि तौफे हज़ार लाते हों,
रंगीन कागज़ों में लपेटे कई ख्वाब लाते हो ,
कभी फिते से बांध कर तो कभी सुटलियो से गुथकर ,
तुम अब भी अपने दिल की बात हर बार केह जाते हो ,
कभी कहते हो तुम पर पियर सरसो का फूल खूब भाता है,
कभी हरी चूड़ियों से मुझे रंग जाते हो,
तुम्हे तो उस ओखली कि कुट में भी मेरी गूंज सुनाई देती है,
तुम हर बार मझे पुकार कर कोई पुराना राग गा जाते हो,
मैं कह कह कर थक जाती हूं और तुम मनातें नहीं थकते,
आज भी इन सफेद तारो के लिए कनेर के फूल बाग से तोड़ लाते हो,
मैं बार बार मना कर थक जाती हूं,
तुम आज भी ढीली सी कमीज़ में रंगीन कागज़ों में लपेट कर , कपकपाते हाथों से सुतलियो को पकड़ कर उस बेज़ान में जान डाल जाते हो ,
तुम आज भी तौफे मेरे लिए हज़ार बार लाते हो ,
बार बार लाते हो।
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