"यादें इश्क़ की"
हर रात उसकी यादों को दफन करके सोता हूँ ,
वो ज़िन्दगी है शायद,सुबह फिर उसी का होता हूँ।
जिसकी खुशी की खातिर था दिल मुझसे बगावत में,
कम्बख्त एक झलक पाने को,अक्सर बहुत रोता हूँ।
कातिल आदाओं में जिसकी नशा था मयखानों का,
उस इश्क़ की तलाश में,बेइन्तहां खुद को खोता हूँ।
उसकी जुल्फों की घनी साये में कुछ ख्वाब थे मेरे,
वो समंदर थी इश्क़ की,मैं तालाब का इक गोता हूँ।
खड़ा करना है सबको इक दिन इश्क़ की कतार में,
जो कहा करते हैं अक्सर ,मैं मकाम बहुत छोटा हूँ ।
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