Navaldeep Singh
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ये जिंदगी बीमारी की दवा मांग रही है
ये रूह अमरकंटक की हवा मांग रही है
मुझे कब अपने पास बुलाओगी मईया
गले से लगाकर कब पार लगाओगी नैया
आंखे तरस रही है तुम्हे देखने के लिए
बाहें तरस रही है तुमसे मिलने के लिए
सुकून की तलाश मैं कब से कर रही हूँ
तुमसे मिलने के लिए कबसे तड़प रही हूँ
मईया एक बार बुला लो मुझे अपने धाम
आप में ही तो बसती है मईया मेरी जान।-
बड़ा मुश्किल चल रहा है वक़्त
मेरी मैया तुम हाथ थाम लो ना,
हिम्मत टूट सी रही है अब मेरी
मैया मुझमें हिम्मत डाल दो ना,
कई दर्दों से एकसाथ घिर गई हूँ
इन दर्दों से आप निकाल दो ना,
पल पल दर्द बढ़ ही रहा है मैया
अपनी बिटिया को संभाल लो ना।-
मुझे याद है जब भी मैं तुम्हें निहारती हूँ तब मेरे नयनों से अश्रुधारा बहती है.... मेरे अश्रु की एक-एक बूंद तुम्हारे प्रति मेरे प्रेम का प्रतीक है जो तुम्हें मेरे ओर करीब लेकर आता है....तुम प्रेम ही नहीं बल्कि मेरा संपूर्ण ब्रह्मांड हो।
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नर्मदा
स्वर्ग से उतरी नहीं मैं,पर धरा की प्राणदा हूं।
जाह्नवी गंगा नहीं मैं। शंकरी मैं नर्मदा हूं।
नीर पियरी से सजा है। तीर मंगलाचार गाए।
चार संगी और सुहागिन,आस लेकर पास आए।
एक कंकड़ और जड़ता,कोई मेरे भूषणों में।
मीन जैसे कर्ण फूलों में,मकर बिंबित कणों में।
भक्ति में भूला हुआ कि,रत्न मैं ही संपदा हूं।
पातकों की तारिणी मैं,शंकरी मैं नर्मदा हूं।
बेसहारों का सहारा ,प्रात की अलसाई धारा।
गा रहे मेरी प्रतिष्ठा,पार जिनको भी उतारा।
सूर्य आता नित्य ही,मेरी चरण रज धारने को।
और कर जाता निवेदन,चांदनी स्वीकारने को।
मैं नवल भी हूं पुरातन, और सनातन सर्वदा हूं।
दीन की दासी भी हूं मैं,शंकरी मैं नर्मदा हूं।
पुण्य कर्मों का मैं अर्जन,पाप का मुझमें विसर्जन।
पीर हर लेता प्रवाहित,नीर का अविराम गर्जन।
नारियल की खोल फेंको,बालकों का खेल देखो।
साथ बहने को भी आतुर,मां से इनका मेल देखो।
कृष्ण धारें वह सुदर्शन, मैं पवनसुत की गदा हूं।
मैं ही बंजर की सखी हूं। शंकरी मैं नर्मदा हूं।।
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नमामि देवी नर्मदे
तेरे दर पर आकर सभी सुकून पाते है,उदासी से जूझते हुए भी यहां आकर एक बार जरूर मुस्कुरा जाते है।-