नारायण के छठे अंश
जमदग्नि सुत श्रीधाम की
क्रोधाग्नि से पाप ध्वंस हो
जय श्री परशुराम की ।
कृपा दया ममता ब्राह्मण के
आभूषण सब कहते थे
शासक जन तब शक्ति के बल पर
उन्हें दबाए रहते थे।
तभी ब्राह्मणों की झोली में
धरती पुनः तमाम की
सच्चे समतावादी भगवन
जय श्री परशुराम की।
नीति से विचलित माता हुई तो
पितृाज्ञा को मान दिया
पुनः मात हों जीवित ऐसा
पिता से फिर वरदान लिया।
क्रोध के वश में निर्णय न लो
बात सिखाई ज्ञान की
शिव का परशु भी करता है
जय श्री परशुराम की।
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चार दिन की जिंदगी ,चार लोगों की बातें
चार कंधों का सहारा या मंच पर चार शब्द
अधूरे मकसद ख्वाहिशों की आवारगी में फंस गए
हम इंसान इस दुनिया की बेचारगी में फंस गए।
कभी दरख़्त को देखो,तुमसे ज्यादा मजबूत है वो
कुल्हाड़ी से डरता नहीं, खुद ही ताबूत है वो।
शिकन में जी रहे, सुखन की तलाश में
दौड़ना पड़ता है जीत की कयास में।
दूसरों को देख अपनी हार ही में फंस गए
हम इंसान इस दुनिया की बेचारगी में फंस गए।
साक्षी
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भवन में भुवन में निरखते खड़े हैं
भगत सब तुम्हारी शरण में पड़े हैं।
कलयुग में बदली समय की सुई है
माता कुमाता कभी न हुई है।
चली चैत्र नवरात्र की पुण्य बेला
है शक्ति उपासक सहज ही अकेला
भरो कंठ हमको, दुलारो तनिक तो
सहा जाता अब न जगत का झमेला।
भरे आस ममता की चूनर छुई है।
कि माता कुमाता कभी न हुई है।
नया वर्ष आया है सुनते तो हैं पर
नया पुण्य कब तक फलेगा भवानी
नए भाग्य का चंद्र कब पूर्ण होगा।
नए दिन हो अपनी कथा क्यों पुरानी।
बिना भक्ति सांसें भी बोझिल रुई हैं।
माता कुमाता कभी न हुई है।
साक्षी-
राग रंगत नज़ाकत सुखन छोड़े
धीरे धीरे ये सारे वहम छोड़े
छोड़ने को तो सांसें पड़ी थीं बहुत
करने ख़ुद पर मगर अब सितम छोड़े।
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बढ़िया हुआ प्रशिक्षण पत्थर दिलों के साथ !
दिल का किया परीक्षण दिल टूटने के बाद।
तुम खुद न मिलने आए, आधी रही मुराद
हमसे हमें मिलाया इसका है धन्यवाद।
लगता था चल बसेंगे दो चार ही दिनों में
बरसों बरस जिए हम दिल टूटने के बाद।
चलती है महाभारत कुरुक्षेत्र में हृदय के
होना ही है पराजित हे पार्थ हर तरफ़ से।
जितनी समाज सेवा दिल में उबल रही है।
जन्मी है मित्र ये सब दिल टूटने के बाद
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न शिकवा न गिला करिए।
रुखसत ए काफ़िला करिए।
इश्क खुद से ही मुकम्मल है
खुद से बागों में मिला करिए।
हो शुक्र मयकदा छूटा
बेरूह वास्ता टूटा
वो ख्वार आदतें बदली
जो रूठना था वो रूठा।
न ज़िक्र ओ मामला करिए
न गम का सिलसिला करिए।
लोगों से बुझती है रौनक
तन्हाई में खिला करिए।
साक्षी
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सब अपने भावों को जीते
हैं कविता की ओट में।
एक अलग संसार बसा
करता है योर कोट में।
खुशियों की फुलवारी हो
या दुख की बेजा बेलें हों
भरी भीड़ में मगन हों या फिर
गहरे निपट अकेले हों।
लिखते रहते हैं सारे ही
होकर घायल चोट में।
एक अलग संसार बसा
करता है योर कोट में।
तिथि दिवस सारे त्यौहार ,
हम साथ मनाते हैं हर बार
जो भी सपने मन में होते
शब्दों से करते साकार।
शांति प्रेम संदेश दे रहे
जग की लूट खसोट में।
एक अलग संसार बसा
करता है योर कोट में।
साक्षी
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इस जीवन में दुख भारी था
यूं तो उससे पहले भी
रोना गाना सब जारी था
यूं तो उससे पहले भी।
लेकिन उसके आने से पहले
मन इतना खुश न था
दुनिया जीत लिए जाने का
इतना तो साहस न था।
तो फिर बोलो क्यूं न रोए
मन उसके जाने के बाद
क्यूं न करता ये मन आखिर
दाता से अपने फरियाद
लेकिन अब महसूस हो रहा
ये सब भ्रम का किस्सा है
आना जाना ,खोना पाना
सब जीवन का हिस्सा है।
कुछ सीख समझ और चलता चल
सबसे यूं ही हंस बोल सही
वैसे भी तो गुजरे अतीत का
होता है कुछ मोल नही।-
तुम्हारे जाने से ज़्यादा कुछ बदला नहीं वैसे भी
कुछ तार मन के टूटकर बिखरे हैं बस ऐसे ही।
झूठी खुशियों के पल गायब हैं अच्छा ही है।
एकाकी पन अब भी कायम है अच्छा ही है।
तुम्हारे जाते ही मैंने क्या कर लिया तुम समझोगे?
घर से दूर जाने का दुस्साहस करलिया तुम समझोगे ?
साफ अतीत में एक मैला पन्ना जोड़ लिया तुम समझोगे ?
अच्छे खासे जीवन को मैंने किस तरह मोड़ लिया
तुम समझोगे?
हां तुम थे कभी धड़कन की तरह
मगर अब इस धड़कन की आवाज भारी लगती है मुझे
सांसें एक दूषित हवा और जिंदगी बीमारी लगती है मुझे।
साक्षी-
मुझको सोचा न जाए
ये तो कमोबेश
तुम भी सोचते होगे।
मगर फिर भी जब कभी
तुम किसी के साथ
खाया करते होगे
मैगी मजे से,
न चाहते हुए भी एक बार को मुझे
तुम सोचते होगे।
और जब जब उस राह से गुजरते होगे
जहां हम मिले थे
दिल को बहलाने के बाद भी
मुझे तुम सोचते तो होगे।
अब मैं कहती हूं
मुझे सोचना बंद करो
मेरे कतरे को निकाल दो बाहर
अपनी सोच से
हह्ह!!! ये क्या क्या सोच रही है!
तुम भी सोचते होगे।
साक्षी
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