वो सारी तर्कशीलता,
बुद्धिमत्ता,
आज़ादी और चंचलता ,
जो एक बेबाक लड़की की
खुली जुल्फों में बेफिक्री से घूमती हैं...
चुटकी भर सिंदूर पड़ते ही कस के बाँध दी जातीं है
एक बेबस, लाचार, बेवकूफ़ सी औऱत के जूड़े में...-
पहचान सको अपना अस्तित्व तो ,
अपने गिरे वस्त्र भी तुम उठा लेना ,
हे नारी !
अपने हक की इस लड़ाई लड़ाई में
शस्त्र (आवाज) तुम भी उठा लेना ....
लोग कहेंगे तुम अछूत हो ,
उजड़े हुए समाज में काली सी धूल हो,
बातों के इस तीर को सीने से तुम लगा लेना,
हे नारी !
अपने हक की इस लड़ाई लड़ाई में
शस्त्र (आवाज) तुम भी उठा लेना....-
क्या उसका अस्तित्व ,,
क्या उसका मुकाम है ??,,
आज तुम जान ही लो,
की क्या उसकी पहचान है!!!
भोर में खिलता आफ़्ताब है ,,
निशा में महका ख्वाब है!!
नीर में छुपती अग्नी है ,,
पावक में तपती ठंडी है!!
नवनिर्माण का वो श्रोत है ,,
पवित्रता की वो ज्योत है!!
वो एक नही अनेक किरदार है,,
वो " वो है,, यही उसकी पहचान है!!
घर आंगन की सज्जा है ,,
घूंघट में झलकी लज्जा है!!
ज्ञान का वेद- पुराण है ,,
सदियों से अटल पाषाण है!!
फसलों से सजा खेत है ,,
पुष्पन से लदा पेड़ है!!
वो एक नही अनेक किरदार है,,
वो" वो है,, यही उसकी पहचान है!!
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मै औरत हूँ नारी हूँ
वैश्या भी हूँ कुवारी भी||
मै सीता हूँ राधा हूँ
द्रौपदी भी हूँ काली भी||
मै गंगा हूँ जमुना हूँ
फूल भी हूँ क्यारी भी||
मै दुख हूँ अभिषाप् हूँ
कलंक भी हूँ नाकारी भी||
मै बेटी हूँ माँ हूँ
पत्नी भी हूँ दादी भी||
मै आग हूँ शोला हूँ
पद्मावती भी हूँ झाँसी वाली रानी भी||
मै औरत हूँ नारी हूँ
वैश्या भी हूँ कुवारी भी||-
मातृशक्ति का एहसास कराने को,
मां दुर्गा को नारी रूप दिया...
दुर्गा को देवी मान लिया,
औरत को औरत ही रखा गया..-
जीने दो उसे जो आई है,
खुद सृष्टि का निर्माण लिए..
(A Poem On Female Infanticide)-
अ नारी तु छोड़ अब लक्ष्मी, गोरी का रूप बनना तु अब दारन कर चढीं का रुप अपनी ही रक्षा के लिए
ये वो रावण के दौर का राम राज्य नहीं कि तेरी इजाजत के बगैर तु रावण के घर भी महफुज रहें
ये तो महाभारत कें दौर से चला आ रहा वो वक्त जहाँ घर के आगन के शोर से लेकर शहर सनाटें तक भुख फैलीं है हवस की
अ नारी छोड़ गोरी लक्ष्मी का रूप कही सिता बनते बनते कल कि दो्पती तु ना बन जाए-
औरत हूं मैं कोई सामान नहीं......
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Amar ujala में प्रकाशित 🥳🥳-
मां ने रोक लगाई तो उसे प्यार का नाम दे दिया
पिता ने बंदिशें लगाई उसे संस्कारों का नाम दे दिया
सास ने कहा अपनी इच्छाओं को मार दो
उसे परंपराओं का नाम दे दिया
ससुर ने घर को कैद खाना बना दिया
उसे अनुशासन का नाम दे दिया
पति ने थोप दिए अपने सपने अपनी इच्छायें
उसे वफा का नाम दे दिया
ठगी सी खड़ी मैं जिंदगी की राहों में
मैंने उसे किस्मत का नाम दे दिया😔
𝙍𝙀𝘼𝘿 𝙄𝙉 𝘾𝘼𝙋𝙏𝙄𝙊𝙉👇👇-