मेरा वो खुदा हो जहां मेरी हर दुआ कबूल होती है।।
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घने जंगल में एक लोता मकान है ये विविक्ता,,
लाखों की भीड़ में गुम हुआ सामान है ये विविक्ता,,
दुखी है,, रोना चाहता है,, फिर भी मन ही मन घुट रहा इंसान है ये विविक्ता।।।।।-
जिसे मसान ने भी दो गज ज़मीन देने से इन्कार किया,
में वो जिंदा लाश हूं।।
गुनाह मेरा कुछ नहीं,,
में तो तेरी हवस का शिकार हूं।।
(Read in caption)-
तू मेरे लवों पर लगी उस आखिरी सिगरेट की तरह है,,
जिसकी तलब हर पल रहती है लेकिन अब उसे में छूना भी नही चाहता।।।।-
इस उलफत के ज़वार को ,,
ये मोहब्बत में मिली अजिय्यत को,,
ये सब याद रखा जाएगा।।
मैं मैं रहूंगी ,,तू तू होगा ,,
लेकिन तेरे दिए इन जख्मों पर मरहम कौन लगा पाएगा,,
ये सब याद रखा जाएगा।।।-
खुले आसमान से ये कैसा कहर बरस रहा है ,,
मेरा मुल्क चंद सांसों को तरस रहा है।।
कोई कुंभ में उलझा है तो कोई जमात में फंसा है,,
अरे यहां का राजा ही रैलियों में खड़ा है,,
जहां हर पल किसी गरीब की सांसे थम रही हैं,
वहीं कुछ सौदागरों को बंगाल की सत्ता दिख रही है,,
सोने की चिड़िया था जो कभी वो अपने ही लुटेरों के दर पर भटक रहा है,,
मेरा मुल्क चंद सांसों के लिए तरस रहा है।।
खबरें छपी है कि ये जमीं अपने ही पूतों को सुलाने के लिए कम पड़ चुकी है ,,
किताबों की जगह हमारे भविष्य की कतारें ठेकों पर लगी हैं,
मंदिर मस्जिद बंद है, स्कूलों में ताला लगा पर मयखाना खुला है।।
मेरा मुल्क चंद सांसों के लिए तरस रहा है।।
कहीं चिता तो कहीं कबरें खुदी हैं,
दवाइयों की कालाबाजारी का मोल इंसान की सांसे लग चुकी है,,
जहां प्रजा की निगाहें राजा पर हैं, वहीं राजा की निगाहें सत्ता पर है ,,
इस राजा प्रजा के खेल में मजदूर अपनी जिंदगी से ही पलायन कर चुका है।।
मेरा मुल्क चंद सांसों के लिए तरस रहा है।।
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शाम भयी जमुना के छोर पर,
गुजरिया निहारे तिहारी बाट,,
"आओ ना छलिया ये रैना भी बीती
चांद उतरो जमुना के पार"
नजर दुड़ाए वा हर रस्तन पर,
जाने कोन राह कान्हा को भाए,,
नयनन में कारे बदरा बसाए,,
झलकात है मुतियन की धार,,
"आओ ना छलिया ये रैना भी बीती
चांद उतरो जमुना के पार"
दरश बिना तरस उठी अखियां,
राह तकत थकी है नजरिया,
प्रीत को भक्ति बना कर बैठी,
कब आओगे कृष्ण मुरार,,
"आओ ना छलिया ये रैना भी बीती
चांद उतरो जमुना के पार"
सुध बुध खो रही ये गुजरिया,,
विरह की अग्नि अब सही ना जाए,
गइयां चराने में ऐसा कैसा उलझा ,,
जो सुन ना सके राधा की पुकार ,,
"आओ ना छलिया ये रैना भी बीती
चांद उतरो जमुना के पार"
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दरीचा में बैठा मुसव्विर महताब तक उड़ान भरने की साज़िश कर रहा है,
ये दिल अग़यारों से उल्फत के ख्याल बुन रहा है||-