शाम भयी जमुना के छोर पर,
गुजरिया निहारे तिहारी बाट,,
"आओ ना छलिया ये रैना भी बीती
चांद उतरो जमुना के पार"
नजर दुड़ाए वा हर रस्तन पर,
जाने कोन राह कान्हा को भाए,,
नयनन में कारे बदरा बसाए,,
झलकात है मुतियन की धार,,
"आओ ना छलिया ये रैना भी बीती
चांद उतरो जमुना के पार"
दरश बिना तरस उठी अखियां,
राह तकत थकी है नजरिया,
प्रीत को भक्ति बना कर बैठी,
कब आओगे कृष्ण मुरार,,
"आओ ना छलिया ये रैना भी बीती
चांद उतरो जमुना के पार"
सुध बुध खो रही ये गुजरिया,,
विरह की अग्नि अब सही ना जाए,
गइयां चराने में ऐसा कैसा उलझा ,,
जो सुन ना सके राधा की पुकार ,,
"आओ ना छलिया ये रैना भी बीती
चांद उतरो जमुना के पार"
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