एक पतंग है मेरी
रंग बिरंगी, चटकीली सी
कई संक्रांति से उसे मैंने निकाली नहीं
कहीं कट ना जाए,
कोई ले ना जाए
क्या पता
कोई इतने प्यार से
उसे सज़ा के रख ना पाए
पहले खूब उड़ती थी वो
डाल डाल पर मिलती थी वो
पर,
एक बार फस गई थी वो
बारिश, तूफान में थम गई थी वो
बहुत ध्यान से रखा मैंने उसे फिर
कागज़, गम से चिपकाया मैंने उसे फिर।
अब,
अलमारी में पड़ी अधमरी सी हो गई है
सोचती हूं फिर उड़ने दूँ उसे
जाने दूँ कहीं फिर उसे
पर डर जाती हूं कि कहीं
कोई उसे काट कर
अकेला ना छोड़ दे,
एक पतंग है मेरी
रंग बिरंगी, चटकीली सी,
एक ऐसा ही दिल है मेरा,
मोहब्बत से भरा, अकेला सा!
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