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इश्क का दिल में ऐसा तुफान दे गयें
तलब थी जमीं कि वो आसमान दे गयें
सारे गमों का बोझ दामन में डाल कर
बस हमेशा मुस्कुराने का पैग़ाम दे गयें-
फिर मैं मुस्कुराने लगा हूं
जा कर दूर तुझसे खुद को पाने लगा हूं
गमों की छोड़ बस्ती खुशियों से रिश्ता बनाने लगा हूं
आहिस्ता आहिस्ता फिर मैं मुस्कुराने लगा हूं
अपने भीगे सिरहानो फिर सुखाने लगा हूं
तेरे ख्वाबों की दुनिया से दूर हकीकत में आने लगा हूं
टूटे से आशियाने को एक बार फिर सजाने लगा हूं
आहिस्ता आहिस्ता फिर मैं मुस्कुराने लगा हूं
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हम भी कभी मुस्कुराया करते थे
उजाले में भी शोर मचाया करते थे
उसी दिये ने जला दिया मेरे हाथों को
जिस दिये को हम हवा से बचाया करते थे-
मैंने सीखा है ,हर वक़्त मुस्कुराना
बस कोई मुस्कुराने की वजह न पूछे।-
Ae zindigi aajkal thoda muskurane laga hu mei..!!
To kab khel rahi aapna agla daav tum??-
जो पूछते हो मेरा सब़ब-ए-मुस्कुराहट
तो सुनो खुद को आईने में देख लो ना।।।-
Dil ko to adat si hai gham uthane ki
Par himmat nahi hai ab muskurane ki-
Ke iskadar adat ho gaye
Ha khudko satane ke.
Ab to man he nahi karta kise
Ko apna dard batane ke.
Or kis ko kahe apna hal-e-dil
Kise ke pas fursat kaha ha sath
Muskurane ke.-