राधे-राधे बोल कर हर लेता है तू सबकी पीड़ा,
शायद इसीलिए तेरे प्रेम में दीवानी हुई मीरा |
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है एक पगली कृष्ण प्रेम में दीवानी
भक्ति काल की कवयित्री मरुधर मीराबाई मंदाकिनी
बाल्यकाल में श्री कृष्ण को ह्दय में बसा लिया
आँसुओ के जल से सींच कर पल्लवित-पुष्पित किया
ब्याही किसी ओर से गई ,मन में श्याम का वास था
पैरो में घुँघरू बाँधे तो कहा राजकुल की परम्परा का नाश किया
राणा ने विष भेजा तो कभी शूलों की सय्या सजाई
कृष्ण प्रेम में तन्मय मीरा ने सब खुशी से अपनाई
बाल भी बांका न हो पाया मीरा का
तभी तो कृष्ण भक्तो में सर्वोपरि महिषी कहलाई
बस अपने गिरधर के दर्शन को तरस गईं
विरहिणी मीरा प्रेम के तत्व को समझ गई
मीरा की लगन अनूठी और अनन्य थी
अलौकिक प्रेम से वो श्री कृष्ण में बस गई-
// मीरा बाई //
पवित्र प्रेम और निस्वार्थ भक्ति की गाथा, ये सदियों पुरानी हैं,
सुना है वृंदावन में, मीरा बाई नाम की, कोई कृष्ण दीवानी हैं।
महलों में पलने वाली, जोगन बन रहने लगी,
मुख से सिर्फ़ एक शब्द, कृष्णा-कृष्णा कहने लगी।
क्यूं गली-गली भटक, तुम घूम रही हो,
पृथ्वीलोक में मीरा क्यों तुम, गिरिधर को ढूंढ रही हो;
जब मनुष्य ही प्रेम न करता इस धरती पर,
फिर क्यों तुम ईश्वरीय प्रेम, भूलोक में ढूंढ रही हो ।
कब तक पैदल चलोगी, थककर तुम गिर जाओगी,
कोमल हृदय से, वैराग्य कष्ट न सह पाओगी;
पागल कह के ये समाज तेरा उपहास उड़ाएंगे,
इस मरुभूमि में प्रेम रूपी कमल, कभी न खिल पाएंगे।
अरे लाखों गोपियां, कान्हा की दीवानी हैं,
राधा का प्रेमी वह, रुक्मणि का स्वामी है;
तेरा प्रेम समझकर क्या, वह तुमसे प्रीत करेगा,
समय का अभाव उसे, क्या तुम्हारे पास वह रुकेगा।
मत भूलो तुम सामान्य नहीं, रक्त से खानदानी हो,
चित्तौड़गढ़ सा प्रतिष्ठित कुल की, शिरोमणि महारानी हो;
कृष्णा को पा कर भी, तुम क्या पा पाओगी,
इतना कुछ खो कर भी, क्या तुम न पछताओगी।
माना प्रेम मैं सब जायज़ है, पर बिन देखें प्रेम कौन करता हैं,
मिलने की रत्ती भर उम्मीद नहीं, फिर भी विष सेवन कौन करता है।
कृष्ण-भक्त तो असंख्य यहां, पर मीरा-भक्ति अद्भुत हैं,
मीरा वीणा धुन में तो, स्वयं नटनागर यहां सम्मोहित हैं।
🖋️🖋️🖋️ Kumar Anurag
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बिन करताल पखावज बाजे, बाजे म्रिदु झंकार
नाच रही अनहद में मीरा, जैसे रोम रोम रणकार-
मेरे पास पाने के लिए भी बस तुम हो कृष्णा,
और खोने के लिए भी तुम ।।
जो पालू तुमको तो जीवन सफल,
जो खो दू तो मर जाऊं ।।-
"निस्वार्थ प्रेम"
मैं मीरा हूँ मोहन की,
मैं जोगन हूँ कान्हाँ की,
मैं नहीं राधा जिसे क्रिष्ण के नाम से जुड़ने का मान मिला,
मैं नहीं रुक्मिणी जिसे अर्द्धांगिनी का स्थान मिला,
मैं वही मीरा हूँ जिसका प्रेम पागलपन कहलाया था,
भगवान से तुम्हें प्रेम कैसा यह सवाल दुनिया ने मुझसे किया था,
मुझे कोई आस नहीं थी मोहन को पाने की,
चाहत थी बस मोहन को अपने दिल मे बसाने की,
विष का प्याला पीकर मैं अपने मोहन की कहलाई हूँ,
नहीं आ सके मोहन मेरे पास तो क्या, विष प्राशन कर मैं अपने मोहन से मिल पाई हूँ,
त्याग, समर्पण और भक्ति का अलग रूप मैने बतलाया है,
निःस्वार्थ प्रेम का मतलब मैने ही तो दुनिया को सिखलाया है..!!-
तुझमें समर्पण मै हो गई हूं,
मुझमें मुकमल तुम हो गए हो।।
मुझे ये पता है,
मेरे पास तुम हों।।
इस बेजान सी ज़िन्दगी में,
मेरी आस तुम हो।।
फिर ये दुनियां ना मेरी,
फर्क पड़ता है क्या।।
मुझे ये पता है,
मेरा विश्वास तुम हो।।-
लगन ये मीरा बाई सी,
कान्हा कहा से लाओगे।।
टूट गई जो सांसे मेरी,
तो कैसे मिलन को आओगे।।
(Read Caption 👇)-
सांसो से रिश्ता तोड़ भी दू
पर तुमसे तोड़ ना पाऊंगी
यह देह त्याग भी दू कान्हा
आत्मा से तुम्हे मै ध्याऊंगी
हर क्षण में मेरे कृष्ण बसे
अधरो पर कृष्ण ही लाऊंगी
ऐसे सिमरूंगी कृष्ण तुम्हे
मै खुद को भूल जाऊंगी
प्रीत में जोगन हुई हूं बैठी
संसार से मै मूड जाउंगी
प्रेम की सीमा से परे में ऐसे प्रेम निभाऊंगी
प्रेम की माला बनकर तेरे तन पर झर-झर जाऊंगी
बेठू नैया प्रेम की, इस जग से में तर जाऊंगी
यह एक तरफा है प्रेम मेरा
मै एक तरफा ही निभाऊंगी
जो कहे सो कहे ये दुनिया
मै दूजी मीरा बन जाउंगी!!
मै दूजी मीरा बन जाउंगी!!-