जय घोष हो सृष्टि मैं अनादि का अनंत तक
मुण्डों की माला का भस्मों के रमण तक
अभिलेखों के शंखनादों से मन की धनक तक
नेत्रों की शाला से शशीललाट के शिखर तक
जय घोष हो जय घोष हो ।।
जय घोष हो सन्यासी का दिगंबर पट धारक अभिनाशी तक
बेल, भांग ,धतूरे से कंठ मैं विष धारण कैलाशी तक
मृत्युंजय महेश्वर का शमसान के निवासी तक
जय घोष हो जय घोष हो ।।
जय घोष हो शून्य का शक्ति के पुंज तक
परम ज्ञानी के अचिन्त्य से ब्रह्मण की समझ तक
कीटों के सार से उमा के सुहाग तक
जय घोष हो जय घोष हो ।।
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