अंधरे घरों मेँ रोशनी जलाते हो..
तुम मेरे हो अब भी ये मुझे बताते हो..
तस्वीर हाँथ मेँ रख के अहसास है मेरा तुम्हे..
मेरा जन्मदिन अब भी तुम मुझसे पहले मानते हो..
बरसों पहले लगी थी मै तुम्हारे गले..
क्या अब भी तुम मेरा परफ्यूम लगते हो..!!
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कुछ बात पुरानी है..
हाथों मेँ जिम्मेदारी की जंजीर लगा के रखी है..
बरसों से बेटे न माँ से बात छुपा के रखी है..
यहाँ किसको आना था किसके हिस्से मेँ..
हमनें तो यूँही ऊँगली मेँ अंगूठी फसा के रखी है..
और मिलाना अब और होगा नहीं मुमकिन..
हमनें पंखे से अपनी एक गाँठ लगा के रखी है..
बरसों से बेटे न माँ से बात छुपा के रखी है..!!
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एक पॉलीथिन की पतंग उड़ाते रहे हम..
वो खिलौनों से खिलतीं थी, रात भर खिलौने बनाते रहे हम..
वो स्कूल जाती थी साथ मेरे, रास्ते भर उससे दूर जाते रहे हम..
एक किसको आना था खेल के किसके हिस्से मेँ, एक उसके हिस्से मेँ आने को मार खाते रहे हम..
एक उसको पाने के खातिर उससे दूर शहर मेँ कमाने लगे हम..
आखरी बार उसको जाता देख कर, कार के पीछे दौड़ लगाते रहे हम..!!
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ऐसी भीड़ थी ऐसा तमशा लगा लेते थे लोग..
मजबूरी थाली बजाती थी और झट से भीड़ जमा लेते थे लोग..
बच्ची रस्सी पर चलती थी और उससे भी मन बहला लेते थे लोग..
भूख हाथ फैलती थी और नजरें चुरा लेते थे लोग..
बचपन तमशा करता रहता था और उसमे भी मजा लेते थे लोग..!!
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हम सो गये हमें घर जाना था..
तिरंगे मेँ लपेट के हमें, माँ ने गोद मेँ सुलाना था..
याद रहता हमारा नाम गली मोहल्ले वालों को हमें वतन पर ऐसा मर जाना था..
दरख्त छाओं को तरसती है हमें बाबा को चस्मा दिलाना था ..
हम सो गये हमें घर जाना था..
एक कर्ज उधार था एक कर्ज चुकाना था..
हमें घर जाना था..!!
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मेँ गुड़िया तेरे बचपन की..
कहीं पड़ी रही कहीं छूट गयी..
तुम बचपन के वादों को बड़े होते ही भूल गयी..
दिल के मेरे अंदर तक बरसों की धूल गयी..
तुझे याद नहीं रहा घर ले जाने का, तू मुझे रास्तों मेँ ही भूल गयी..
मेँ गुड़िया तेरे बचपन की..
कहीं पड़ी रही कहीं छूट गयी..!!
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बम्बई की मिठाई साथ अपने बचपन ले आयी..
रंग बिरंगे खिलौनों से फिर उसने लकड़ी सजाई..
गली मोहल्लों मेँ उसने आवाज लगायी..
बच्चों की टोली घर से पैसे भाग कर लायी..
याद उन गलियों से फिर उसने घंटी बजायी..
दिल के कोने से एक बच्ची दौड़ कर आयी..
फिर आयी बम्बई की मिठाई..!!
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छाओं बट गयी और दरख्त छट गये..
बेटों की ग्रहस्ती बसाने मेँ पुरखों के खेत बट गये..
औरत ने माँ-बाप का सुख खा लिया, जिन्हें पालने मेँ माँ बाप के पेट कट गये..
बूढ़े माँ-बाप को छोड़ कर एक दिन बच्चे शहर मेँ बस गये..
और आखिर के कुछ साल भूख और तेरी माँ के छालों मेँ पट्टी करते गुजारी..
दो रोटी कमाने मेँ बाप के हाँथ कट गये..!!
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#marriage sexual rep..
अंधेरे को रौशनी की खुशबू खा लेती है..
वो जिस्म पर गहने लाद कर खुद को सजा लेती है..
महंगे लिवास में उसके रूह की इत्र की खुशबू को दबा लेती है..
जब महफिलों में आँखों की कालिख़ को वो मुस्कुराहट से छुपा लेती है..
और रूह के ज़ख्म उसके ताज़ा ही रहते है..
जब बिस्तर की सिलवटों पर अपने नंगे बदन को रोज छुपा लेती है..!!
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हम उन्हें मेलों में देख कर लौट जाते थे..
जिसके लिये गुल्लक तोड़ कर पैसे लाते थे..
माँ के बनाये मटके बिकते नहीं थे अक्सर..
जो रखते रखते हमसे फूट जाते थे..
मेलों मेँ उन खिलौनों को देखकर हम सब कुछ भूल जाते थे..
जिनके लिये हम महीनों पैसे जोड़ कर लाते थे..
अगली दीवाली तक संभाल कर रखते थे हम उनको..
अक्सर मिट्टी के खिलोने खेलने से टूट जाते थे..!!
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