तुम सिने में तन्हाई का कसक
दबाए बैठे थे
और मैं अनजान बनी बैठी थी,
तुम पलकों पे टूटे सपनों के
चोट लिए बैठे थे
और मैं अनजान बनी बैठी थी,
तुम हर बेरूखी को मेरी परवाह
समझे बैठे थे
और मैं अनजान बनी बैठी थी,
तुम हर तड़प को अपनी हस्सी
में छुपाए बैठे थे
और मैं अनजान बनी बैठी थी,
तुम हर बेबसी में अपने आंसूओ
के लहर बहाय बैठे थे
और मैं अनजान बनी बैठी थी,
अज़ीब ही थी मेरी मगरूरी की
सब कुछ जान के भी
मैं अनजान बनी बैठी थी..-
मगरूरी में दिल की आदत है ये आइना तुम देखो हकीकत हम बयां करे
किस्सा कुछ ज्यादा पुराना न था तुझे मानाने का
कुछ ही दिन तो हुए थे मगरूरी के तुम फिर से रूठ गए
अब बस भी करो , ना तुम आना न हम आएंगे !
यही सच है की आइना तुम देखो हकीकत हम बयां करे !
~सुनील कुमार शर्मा-
Eatna ahankar le kar kahan tak jaoge
Mitti pe bane ho mitti pe hi miljaoge
Thoda leaao badlav apne magruri mein
Syd kisi k dil mein yaad ban k rehjaoge.-
Rehte na mere chahat kabhi adhuri me
Agar thode se kam hote tu apne magruri me-
जख्मों को हरा रखना भी मजबूरी है
दर्द का जहन में रहना भी जरूरी है
कोहरे में लिपटा दिसंबर नहीं हूं मैं,
माना मिजाज़ में मेरे थोड़ी मगरूरी है।-
NAFRAT
Nafrat ke layak bhi nahi hote
Woh log jo saath nibhane ke waade karte hai
Aur tanha kar jaate hai...-
पहले दर्द संजोते थे, अब बाँटते भी हैं
अपनी तन्हाई की आजकल तरक्की जो हो गई है..
सदाएं भी टकरा कर बिखर जाती हैं
मगरूरियों की इमारत इतनी पक्की जो हो गई..
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अधूरे रह गए किस्से हमारी भी मोहब्बत के,
अगर तुम मिल गए होते तो ये मशहूर हो जाते..
तेरी मगरूरियत का लेखा-जोखा क्यूँ करे अब हम,
जो पहले जान लेते तो जरा महफूज हो जाते...
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जो अपने आप को बदलने की कोशिश कर रहा था, शायद उसे पूरा खत्म करने का वक्त आ गया है...
जो उसने करवाया था वादा मुझसे , अब उन वादों को भी पूरा करने का वक्त आ गया है...
मुझे अफशोश होगा, लेकिन क्या करूँ अपनी मगरूरियत में खोए हुए थे हम भी जो तुझसे किया हुआ एक भी वादा निभा नही पाया...
लेकिन अब तुझसे किये हुए हर वादे को पूरा करने का वक्त आ गया है..।।
Prashant shukla-