अंधेरों में चलता रहा, कभी आफताब मांगा है क्या
ख्वाबों में भी किसी से, कोई ख्वाब मांगा है क्या
बताते फिरते हो, नफा-नुकसान मेरी आवारगी का जो
तुमसे मैंने तुम्हारी जिंदगी का हिसाब मांगा है क्या..-
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इश्क और इश्क में सुकून की चाहत, रहने दे
मेरे यार तेरे बस की नहीं है मुहब्बत, रहने दे
रंजिशें, तगाफुल और बेवफाई भी है जिसमें
क्यूं लगा बैठा ऐसे शख्स की आदत, रहने दे
महज जिस्मानी ताल्लुकात रखना आसां है
मगर यूं किसी शफीक की इबादत, रहने दे
ताउम्र प्यासा रहा, तब जाकर अक्ल आयी है
बेफिजूल होती है दरिया से बगावत, रहने दे
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हर बार इश्क का अशफाक होना
अजीब है न यह इत्तेफाक होना
पैबस्त होना किसी गैर से फिर
यानि कि रोशनाई से फिराक होना
बज़्म में तेरी समां रोशन करना
मतलब खुद ही जलकर खाक होना
दूर कर देता है अपनों से भी
कभी कभी ज्यादा बेबाक होना-
खाली हाथ, निपट गओ हाथी, भई साइकिल बेकर
यूपी में भगवा फिर छा गयो, फिर योगी सरकार...-
तजुर्बा मैंने अपनी उम्र से ज्यादा पाया है
मेरी आँखों के सामने से जमाने निकले हैं...-
सावन आया चला जाएगा, फागुन भी न रूक पाएगा
लफ्ज़ों को कैसे मैं खो दूँ ? छन्द भाव न दे पाएगा
क्या रक्खा दुनियादारी में, राजनीति की बीमारी में
क्या लिखूं मैं इस पर अब, कुछ भी न इस बेकारी में
रिश्ते नाते बस झूठे हैं, मतलब निकले तो टूटे हैं
जाया क्यों अल्फ़ाज़ करूं, बीच रास्ते सब छूटे हैं
बात बनी न मयखानों पर, मय छलकाते पैमानों पर
लैला मजनू हीर रांझना, क्या बोलूँ इन अफसानों पर
शब्दों के ही बस राही हैं, हम तेरे दर के प्रश्रायी हैं
कैसे लिखूंँ बिना तेरे कुछ, यादें तेरी ही स्याही हैं
तुम्हें लिखूँगा हरपल हमदम, जब तक मेरी सांस चलेगी
कलम नहीं ये कभी रुकेगी, कलम नहीं ये कभी रुकेगी..-
अम्बर-धरन छटा निखरायो
दिखत सरूप हिये हरसायो
रंग गुलाल चहूं दिस छायो
सुनहु सखी अब फागुन आयो-
आ गया, उससे मिले बगैर ही मैं, उस दिन
उसके घर के बाहर देखकर बारात का घर..-
सब कुछ तेरी मर्जी से होना
आना, जाना, पाना, खोना
तू ऊपर बैठा हुआ खिलाड़ी
मैं तो हूँ बस एक खिलौना
सब तेरी माया का चक्कर
फिर क्यूं ये सब रोना धोना
जितना जी सकता हूँ जी लूं
जीवन क्या है स्वप्न सलोना-