खुद होकर बाजारू,
तुम मुझे इस शहर बदनाम करती हो।
जाना,
क्यों ऐसा काम, तुम अब सुबहो शाम करती हो।
जिस्म की प्यास,
सबसे बुझवाने की, तुम इतंजाम करती हो।
जाना,
क्यों बंद कमरे की काम, तुम अब खुलेआम करती हो।
जो काम मैंने नहीं किया,
वैसे झूठ बोल बोलके, तुम मेरी इज्जत शर्मशार करती हो।
जाना,
ऐसे काम करके, किस बात पे तुम गुमान करती हो।
खुद होकर बाजारू,
तुम मुझे इस शहर बदनाम करती हो।
जाना,
क्यों ऐसा काम, तुम अब सुबहो शाम करती हो।
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