आई म्हणजे आत्मा ईश्वर
आई विना तिन्ही जगाचा स्वामी भिकारी ,
आई म्हणजे प्रेम ममत्व
आई सारखे जगी नाही दुसरे देवत्व ,
बाबा म्हणजे आधार
बाबा म्हणजे कुटुंबाचा धागा
नाही ह्या जगी पुन्हा आई बाबा ची माया
आई बाबा ची इश्र्वराहून ही श्रेष्ठ आहे जागा !
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राधे यदि होता हमारा भी विवाह
तो ये संस्या ही ना अति
तुम आओ मेरे घर या मैं तुम्हारे
ऐसी बात ही ना आती
हम तुम बनाते प्रेम निवास
वहा
मुझ संग मिलकर तुम अपना कुटुंब वही बसाती
राधे यदि होता हमारा भी विवाह
तो ये संस्या ही ना अति-
ये सच है किसी के चले जाने के बाद ज़िन्दगी नही रूकती...
पर ज़िन्दगी जिसने दी हो.. उसके जाने के बाद जी भी नही जाती..-
ತಾಯಿ ಪ್ರೀತಿಗೆ ಮಿಗಿಲಿಲ್ಲ
ತಂದೆಯ ವಾತ್ಸಲ್ಯಕೆ ಸಾಠಿಯಿಲ್ಲ
ಸಹೋದರ ಬಾಂಧವ್ಯಕೆ ಎಣೆ ಇಲ್ಲ
ಸಹೋದರಿ ಸ್ನೇಹಕೆ ಕೊನೆಯಿಲ್ಲ
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परिवार, कुटुंब, सर्वप्रथम, जीवनपर्यंत समर्पित हम।
पर कभी क्या सौम्य स्वभाव से, समझे परिवार स्वरूप का मर्म।
निजकुल, मातपिता, भार्या, बंधु, संतान, मात्र नहीं कुटुंब।
परपरिवार मिथ्या सोच है, ये प्राणी मात्र ही निजकुल संबंध।
उदार चरित्र भी बोले पुराण में, वसुधैव कुटुंबकम् ही सत्य।
हे मानुष, सर्वप्रथम परिवार है, पर निज और परकुटुंब है मिथ्य।
निज वही जो सह सही समय पर, परजन वही जो सामाजिक विष है।
औषध चित्त, चरित्र परिवार है, आरम्भ सम्बन्ध मम कुटुम्ब वहीं है।
यह रचना वसुधैव कुटुंबकम् के विचार और महा उपनिषद् में दिए एक श्लोक से प्रेरित है:
अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।-
तू रख यकीन बस अपने इरादों पर,
तेरी हार तेरे होसलो से तो बड़ी नहीं होगी।
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बेटी जब घर के आंगन में आती हैं
पिता की जिमेदारी थोड़ी भड़ जाती हैं
वही बेटी जब कुटुंब को सम्हालती है सवारति हैं
पिता की नाक शान से उची हो जाती हैं
बेटी जब संसार की सभी सुरक्षा को छोड़ पिता की गोद में बैठ जाती हैं
तब पिता की भूमिका एक महाराज की कहलाती हैं
और बेटी पिता की राजकुमारी कहलाती हैं
पिता को जब भी कोई संस्या सताती हैं
बेटी की प्यारी सी मुस्कान पिता को सकून दे जाती हैं-
बेटी जब घर के आंगन में आती हैं
पिता की जिमेदारी थोड़ी भड़ जाती हैं
वही बेटी जब कुटुंब को सम्हालती है सवारति हैं
पिता की नाक शान से उची हो जाती हैं
बेटी जब संसार की सभी सुरक्षा को छोड़ पिता की गोद में बैठ जाती हैं
तब पिता की भूमिका एक महाराज की कहलाती हैं
और बेटी पिता की राजकुमारी कहलाती हैं
पिता को जब भी कोई संस्या सताती हैं
बेटी की प्यारी सी मुस्कान पिता को सकून दे जाती हैं-