इबारत लिखी थी उन ख़ाली पन्नों पर मैंने,
कोई कहता कहानी, कोई ग़ज़ल कहता,
किसी को लगती बर्बादी पन्नों की,
कि कोई कहता ये दास्तां है दोस्ती की।
नज़र सबकी सही, बस नजरिया अगल था,
वो इबारत थी असल में मेरे दोस्त का नाम।
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एक शिकायत है,
खुद से,
एक शिकायत,
तुझसे भी,
एक शिकायत है,
कुदरत से,
एक शिकायत,
वक्त से भी।
पुलिंदा बन गया है ख्यालों का,
कि ये शिकायत किससे करें,
जो मेरी सुने, जो मुझे समझे,
उसकी शिकायत भी, कि मुझे शिकायत है।-
एक पुराना दरख़्त, खड़ा है वहीं आज भी,
सूखता है और फिर खुद ही हरा हो जाता है,
मौसम, महीने, साल बहुत देखे हैं इसने,
देखा है पंछियों को घोंसले बनाते खुद पर,
फिर देखा भी है पंछियों को, सब छोड़ कर उड़ते हुए,
ये अब भी वहीं खड़ा है, वो ख़ाली घोंसले सहेजते हुए।-
पेशानी पर पड़ी लकीरें आज क्यों गहरी हैं,
मुस्कुराहट जो बिखरती थी,आज ठहरी क्यूं है,
क्यूं ख्याल नहीं कोई, कोई हसरत मचलती नहीं दिल में,
आज खामोश हूं, जैसे कहीं खो चुका हूं शख्सियत अपनी।-
कहीं उड़े अबीर गुलाल,
कहीं भरें गुब्बारे पिचकारी,
कोई खेल रहा रंगों की होली,
कहीं हो रही यारों से यारी।
हुल्लड़ हल्ला चहुं तरफ है,
खुले दिल से गले लगे सब,
रंगों के त्यौहार में भीगे,
प्रेम, विश्वास के रंग मिले अब।
होली का ये मेला सा जो,
लाए सबको साथ संग में,
स्वस्थ सभी हों, प्रसन्न सभी हों,
यही मंगल प्रार्थना भगवन तुमसे।-
The Blessings of Almighty God,
The Beauty who sits besides the Lord,
The One who shines forever,
The One with Umbilical Cord,
Is the Women in this world.
The One who has the power,
The One who can create,
The One who can endure all,
The One who sacrifices gains,
Is the Women in this world.
The One who could rule the world,
The One who rules the heart,
The One who chose to be humble,
The One who I admire above all,
Is the Women in this world.-
यूं कुछ अश्क रुके से मेरी पलकों पर,
कुसूर किसी का नहीं, मेरी शख्सियत का है,
खामोश हूं तब भी नाराज़ हूं
कुछ कहूं तब भी नश्तर चुभे तुझे,
कसूरवार हूं, मेरा कुसूर भी, तुझे ही पता होगा,
मुझे तो बस मेरी गलती की माफी लेनी है।-
वक्त कम है तेरे पास, मेरे पास भी कोई खास नहीं,
तू ज़िंदगी की दौड़ में मसरूफ, मैं भी खामखां यूं ही।-
बदलते वक्त को देखता मैं उस दीवार घड़ी में,
सुई की हर थरथराहट पर गहरी सांस लेते,
कब शाम ढली, कब वो काली रात गुज़री,
न दीदार तेरे हुए, न मैंने चांद को देखा फिर।-