Anshul Saxena   (अंशुल #BeSamyak)
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Joined 1 June 2021


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9 APR AT 20:43

ढलते सूरज को देख उदास मत हो अंशुल,
फिर सवेरा होगा एक नई सुबह के साथ।

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14 MAR AT 19:53

कहीं उड़े अबीर गुलाल,
कहीं भरें गुब्बारे पिचकारी,
कोई खेल रहा रंगों की होली,
कहीं हो रही यारों से यारी।

हुल्लड़ हल्ला चहुं तरफ है,
खुले दिल से गले लगे सब,
रंगों के त्यौहार में भीगे,
प्रेम, विश्वास के रंग मिले अब।

होली का ये मेला सा जो,
लाए सबको साथ संग में,
स्वस्थ सभी हों, प्रसन्न सभी हों,
यही मंगल प्रार्थना भगवन तुमसे।

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8 MAR AT 12:03

The Blessings of Almighty God,
The Beauty who sits besides the Lord,
The One who shines forever,
The One with Umbilical Cord,
Is the Women in this world.

The One who has the power,
The One who can create,
The One who can endure all,
The One who sacrifices gains,
Is the Women in this world.

The One who could rule the world,
The One who rules the heart,
The One who chose to be humble,
The One who I admire above all,
Is the Women in this world.

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6 MAR AT 23:17

यूं कुछ अश्क रुके से मेरी पलकों पर,
कुसूर किसी का नहीं, मेरी शख्सियत का है,
खामोश हूं तब भी नाराज़ हूं
कुछ कहूं तब भी नश्तर चुभे तुझे,
कसूरवार हूं, मेरा कुसूर भी, तुझे ही पता होगा,
मुझे तो बस मेरी गलती की माफी लेनी है।

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24 FEB AT 19:52

वक्त कम है तेरे पास, मेरे पास भी कोई खास नहीं,
तू ज़िंदगी की दौड़ में मसरूफ, मैं भी खामखां यूं ही।

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24 FEB AT 19:21

बदलते वक्त को देखता मैं उस दीवार घड़ी में,
सुई की हर थरथराहट पर गहरी सांस लेते,
कब शाम ढली, कब वो काली रात गुज़री,
न दीदार तेरे हुए, न मैंने चांद को देखा फिर।

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24 FEB AT 19:18

न हमसफर, न कोई हमसाया, न दोस्त साथ में,
फुर्सत बहुत, लफ़्ज़ बहुत, कोई बात करने को तो हो।

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16 OCT 2024 AT 9:18

हवा में घुला ज़हर, पेड़ कम, ज्यादा ईंटों के मकान हैं,
शहर में घर नहीं सराय होते है, रहते यहां ग़ुलाम हैं,
किसी की मजबूरी, किसी के सपने, कोई बस जी रहा,
कभी मीठा, कभी कड़वा, कभी खट्टा तीखा घूंट पी रहा,
दौड़ती भागती ज़िंदगी, मेट्रो ट्रेन भी तो चाहतों की रेल है,
सब कुछ थोड़ा थोड़ा सा, ये दिल्ली के मसालों वाली मुंबई की भेल है।

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16 OCT 2024 AT 8:58

चुप रहना ही ठीक होगा,
आवाज़ से बस शोर होगा,
बदलेगा कुछ नहीं तेरे चाहने से 'अंशुल',
खोएगा तू बहुत कुछ, हाथ खाली ही रहेगा।

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15 OCT 2024 AT 22:06

कुछ तो कहीं गुमसुम है,
कुछ तो सही नहीं है,
कुछ तो कह रहा है कोई,
कोई नसीहत सुनी नहीं है।

सही चाहता हूं करना सब कुछ,
गलत फिर भी कर रहा हूं,
सब कुछ समझ कर भी मैं,
क्यूं नासमझ बन रहा हूं।

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