एक अलग
ही ख़ूबसूरती
छा जाती है
जब मेरी मांँ
पिछौड़ा पहनती
है....-
तुम बनना कुल्हड़ सा
मैं गरम चाय बन जाऊंगी
होगा दीदार तुम्हारा ठंडी सी छांव में
जब मैं नुक्कड़ में चाय पीने आऊंगी-
खुद करके दफ़ा
वो मांगे है वफ़ा
पानी ना दिया
आँसू ही पिया
जब झील थे
चाहती वो समुंदर
अब बोलती है
हम खारे क्यों है
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हरियाली का सार है ये
कुमाऊं का त्योहार है ये
सावन का एहसास है ये
सात फसलों का सहकार है ये
बड़ों का आशीर्वाद भरपूर
मिलने वाला त्यौहार है ये
Ap sabhi ko harala ki subkamnaye😍❤️-
घुघुतिया त्यौहार है दिलों को एकसार करने का,
दूर सदूर बसे परिवार जनो के नाम की माला पिरोकर रख दस्तूर निभाने का,
तलवार, दाडिम का फूल, कनसैड, डमरू और एक ताजा नारंगी की माला याद होगी सबको,भाई बहन की मीठी झडपे जहां घूघतो के कम होने का मलाल भी रहता और ज्यादा लंबी माला का गुरूर भी, सुबह सुबह कौवा बुलाने की हौस भी, मालपूआ, खजूरे , घूघूते खाने की मौज भी मकर संक्रांति /घूघूतिया पर्व की आप सभी पहाड़ियों को ढेरो शुभकामनाएं ,-