मैं जितना लिख पाता हूँ वो उससे कहीं ज्यादा खास है,
मुझसे मीलों दूर हो के भी वो मेरे दिल के सबसे पास है।
उसके बारे में लिख लिख के डायरियाँ भर डाली है मैंने,
पर शब्दों में बयां नही होता प्यार एक पाक एहसास है।
वही तो है मेरे हर शायद को एक काश में बदलने वाला,
इसलिए मैं कहता हूँ कि मेरे सारे काश की वो आस है।
उसकी आवाज़ सुन के दिल को मिलता है अलग सुकून,
फिर फर्क नही पड़ता ये दिल सुबह से कितना उदास है।
बात करने के लिए पास में वक़्त नही दिल होना चाहिए,
वरना इस दुनिया मे काम तो रोज़ हम सब को पचास है।
परायों की इस भीड़ में अकेले ही खुश रहता है 'लोकेश',
पर उसकी कही हर बात में ही अपनेपन की मिठास है।— % &-
𝑭𝒊𝒓𝒔𝒕 𝒄𝒓𝒊𝒆𝒅-&g... read more
जन्नत होंगी तेरी गलियां आखिर तू रोज़ उन से गुजरता है,
खुशनसीब है वो हर कंकड़ जो तेरे पाँव के नीचे ठहरता है,
उन गलियों की हवा में तेरी एक खुश्बू सी घुल जाती होगी,
जब तू जल्दी - जल्दी में घर की सीढ़ियों से नीचे उतरता है।
किसी झरोखे से झाँकती कोई नज़र तुझ पर पड़ती होगी,
लेकिन तू मेरे बारे में सोच के शायद उन सब से मुकरता है।
वहाँ होता तो शाम ओ सहर तेरी नज़र ज़रूर उतारता मैं,
पर क्या करूँ इतना दूर रहना मुझे भी बहुत अखरता है।
बस अब तुझसे एक बार मिलना ही मेरा आखिरी ख़्वाब है,
पर मेरा हर ख़्वाब इन दूरियों के आगे कांच सा बिखरता है।
काश 'लोकेश' भी उन गलियों में पड़ा कोई कंकड़ हो पाता,
जो अक्सर तेरे पैरों के नीचे आकर नए रूप में निखरता है।
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हार गया था जिस लक्ष्य पर,
मै हासिल करने की उसे फिरसे कोशिश करना चहता हूं।
कर सकता हूं मैं ये ,
क्यूंकि मैं खुदको औरों से बेहतर जनता हूं।
और कुछ तो नहीं पर कोशिश करने वालो की कभी हार नही होती,
मै बस इस बात को मानता हूं,
हार गया तो कुछ सीख लूंगा ,
इस बात को भी मैं जानता हूं,
और कोई नही मैं आज मैं बनना चहता हूं।
हार के डर से,
जीत की उम्मीद को बांधता हूं।
कर चुका हुं मै ये पहले,
यह कहकर खुदको संभालता हूं ।
हर हार से कुछ ना कुछ सीखने को मैं जिंदगी मानता हूं,
और कोई नहीं मैं आज मैं बनना चाहता हूं।— % &-
तन्हाई को गले लगाऊँ, कभी-कभी लगता है।
भीड़ में गुम हो जाऊँ, कभी-कभी लगता है।
ज़ोर-ज़ोर से क़हक़हे लगाकर,दुनिया को जगा दूँ।
ग़म की चादर तले सुला दूँ, , कभी-कभी लगता है।
किसी के काँधे सर रखकर, दिल की दास्ताँ सुनाऊँ।
दिल के सारे राज़ दफ़न कर जाऊँ, कभी-कभी लगता है।
लहू से स्याही के रंग को लहूलुहान कर जाऊँ,
लहू को स्याही की दो बूँद पिलाऊँ, कभी-कभी लगता है।
झूठ को कहीं दफ़न कर दूँ इस ख़ाक में,
सच्चाई को मिलने न दूँ राख में, कभी-कभी लगता है।
ग़रीबों की आवाज़ को फ़लक की दीवार से टकराउं,
अमीरों का गुरुर मिट्टी में मिलाऊँ, कभी-कभी लगता है।
सारे ख़्वाब जो देखे हैं, हक़ीक़त से रु-ब-रु कराऊँ,
हक़ीक़त भूल ख़्वाबों में खो जाऊँ,कभी-कभी लगता है।
हक़ीक़त भूल ख़्वाबों में खो जाऊँ,कभी-कभी लगता है।— % &-
मसला मोहब्ब्त का नहीं है साहब,
मसला तो सारा सुकुन का है,
मोहब्ब्त तो मिल भी जाए शायद,
सुकुन मिल पाना मुश्किल है।
मसला मोहब्ब्त का नहीं है साहब,
मसला तो मुकम्मल होने का है,
दिल चुराने वाले तो लाख मिल जायेंगे शायद,
दिल संभाल के रखना मुश्किल है।
मसला पसन्द आने का नहीं है साहब,
मसला तो पसन्द बने रहने का है,
हम तुम्हें समझते हैं कहने वाले मिल जायेंगे शायद,
असलियत में समझने वाले मिलना मुश्किल हैं।-
जन्नत होंगी तेरी गलियां आखिर तू रोज़ उन से गुजरती है,
खुशनसीब है वो हर कंकड़ जो तेरे पाँव के नीचे ठहरता है,
उन गलियों की हवा में तेरी एक खुश्बू सी घुल जाती होगी,
जब तू जल्दी - जल्दी में घर की सीढ़ियों से नीचे उतरती है।
किसी झरोखे से झाँकती कोई नज़र तुझ पर पड़ती होगी,
लेकिन तू मेरे बारे में सोच के शायद उन सब से मुकरती है।
वहाँ होता तो शाम ओ सहर तेरी नज़र ज़रूर उतारता मैं,
पर क्या करूँ इतना दूर रहना मुझे भी बहुत अखरता है।
बस अब तुझसे एक बार मिलना ही मेरा आखिरी ख़्वाब है,
पर मेरा हर ख़्वाब इन दूरियों के आगे कांच सा बिखरता है।
काश 'लोकेश' भी उन गलियों में पड़ा कोई कंकड़ हो पाता,
जो अक्सर तेरे पैरों के नीचे आकर नए रूप में निखरता है।-
.......मर्द बने रहना आसान होता है.......
बेटा होता है, दोस्त होता है,
मेहबूब होता है, पति होता है,
बाप होता है।
कई किरदारों में वह एक ही होता है।
मर्द बने रहना आसान होता है।
मसरूफियत से घिरा हो,
या क़ुर्सी बैठा हो।
अपने लिये वक़्त निकले,
तो सवालों का मेला होता है।
जवाब उसे हर हाल में देना होता है।
मर्द बने रहना आसान होता है।
सफाई दे तो अड़ियल है,
न दे तो खुदगर्ज़ होता है।
लड़े तो बत्तमीज़ कहलाए,
चुप रहे गुनेहगार क़रार होता है।
उसके लिखे को कौन पढता है।
मर्द बने रहना आसान होता है।
रणभूमि आज भी उसकी,
घर के बाहर होती है।
सब कुछ सेह कर, सुन्न कर भी,
मुस्कुराते हुए घर लौटता है।
फिर भी वक़्त का इलज़ाम सर पर उठता है,
मर्द बने रहना आसान होता है।
ज़िन्दगी गुज़र जाती है,
नस्ल उसकी आगे बढ़ती है।
बदन झुका हुआ,
झुर्रियों से भरा होता है।
तजुर्बा हमराह लिये, सांसें गिन रहा होता है।
पुछलो उससे एक बार ही सही,
क्या मर्द बने रहना आसान होता है?-
तुम रूठना मत मुझे रूठे लोग मनाने नही आते,
किसी को हँसाने के लाख बहाने बनाने नही आते।
तुम्हारे सामने तो एक खुली किताब जैसी ही हूँ मै,
क्योंकि मुझे तुमसे अपने ये राज़ छुपाने नही आते।
इस टूटे दिल से तुमने प्यार तो खूब किया मेरी जान,
मगर अब इन लबों पे मोहब्बत के फ़साने नही आते।
मेरे दिल का हर एक ज़ख्म तुमने ठीक कर दिया है,
पर उन सब ज़ख्मों के निशान मुझे मिटाने नही आते।
ये लंबी दूरी का रिश्ता निभा रहे है हम पूरी शिद्दत से,
लाख कोशिश करें मुलाकात के तो ज़माने नही आते।
तुम पर एक मुलाकात उधार रख के मरेगा 'लोकेश',
क्योंकि जीते जीत तो लोग उधारी चुकाने नही आते।-
तुम्हारे लिए तो सारी दुनिया से लड़ जाऊंगा मैं,
बस साथ रहो सच मे ऐसा कुछ कर जाऊंगा मैं।
तुम्हारा साथ निभाने का वादा किया है खुद से,
इसलिए तुम जहाँ बोलो वहीं पे ठहर जाऊँगा मैं।
कोई साथी कोई सहारा नही है मेरा तुम्हारे सिवा,
तुम ही बताओ तुम्हारे बिना किधर जाऊँगा मैं?
फिर सिर्फ सितारों में ही देख सकेंगे ये लोग मुझे,
एक दिन सब से बहुत दूर इस कदर जाऊंगा मैं।
सबकी बातें सुन सुन के मैं अंदर से टूट चुका हूं,
अब गर तुम भी छोड़ गए तो बिखर जाऊंगा मैं।
तुम 'लोकेश' का हाथ हमेशा ऐसे ही थामे रहना,
फिर ये सब कुछ सह कर भी निखर जाऊंगा मैं।-
आस की बन्धन टूट जाती है,
कच्चे धागे कहीं छूट जाती है।
कशमकश बन जाती है ज़िन्दगी,
न जी पाती है न मर पाती है।
आग़ाज़ ब मुश्किल होकर, अंजाम तक जाता है।
अच्छा खासा रिश्ता, मोती सा बिखर जाता है।
तड़प और बेबसी होती है
न ग़म न खुशी होती है।
दिल को यकीन होता नही
दिमाग़ की बेबसी होती है।
रोशनी पड़ती है ग़लतफ़हमी पे,
तब तक किस्सा बन जाता है
इंसान इस आड़ में,
बेबसी का हिस्सा बन जाता है।
ग़लतफ़हमी से यकीन का सफर आसान होता है।
पर ग़लतफ़हमी में इंसान जहाँ-तहाँ होता हैं।-