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दुनियां का सबसे कठिन काम होता है!
एक स्त्री होना !
हर कदम पर कुर्बानी देनी होती है!
बचपन में भाई के लिए!
जवानी में मां-पिता की इज्ज़त के लिए!
और शादी के बाद पति की खुशी के लिए!
और फिर भी पुरुष कहते हैं!
तुमने मेरे लिए किया ही क्या है!-
हमें रिश्ता निभाना था और उन्हें हमें छोड़ कर जाने की जल्दी थी कुछ यूं था हमारा रिश्ता मैं घंटों इंतजार किया करती थी उनका मजाल जो उन्होंने हमारा इंतजार खत्म किया हो हम एक रिश्ते में होते हुए भी एक साथ नहीं थे कुछ यूं था हमारा रिश्ता एक साथ होते हुए भी अजनबी से थे हम कहने को बहुत कुछ हुआ करता था लेकिन सुनने को कोई नहीं कुछ यूं था हमारा रिश्ता आंखों में कई ख्वाब थे एक दूसरे को लेकर पर शायद उन्हें पूरा करने की हिम्मत ना थी दोनों में कुछ नहीं था हमारा रिश्ता वक्त तो था पास पर उन्हें बिताने के लिए साथ कोई न था कुछ यूं था हमारा रिश्ता.. 💔
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waqt agya hai jane ka,, zindegi ki marramatt jo baki hai...
samjhna maat ki daar gye hum,,ye bas tuffan ki pehle ki shanti hai.....-
मेरे सामने बैठा है,,मुझे आज़मा रहा है वो,
मैं सोच रही हूँ कि क्या जता रहा है वो?
कोई दिल-ए-तमन्ना,,के जो छुपा रहा है वो,
या नहीं है कोई दिल में तमन्ना,,बता रहा है वो?
नजरें मिलाकर चाहना मुझको भरमा रहा है वो,
या फकत यूँ ही मुझसे नजरें मिला रहा है वो?
इनकार-ए-मोहब्बत करके भी निभा रहा है वो,
तर्क-ए-ताल्लुक करके भी समझा रहा है वो।
साफ लफ्ज़ो में इंकार कर फरमा रहा है वो,
फिर रुख बदलकर अपना कुछ घबरा रहा है वो।
भूल कर सब,,,नई दुनिया बसा रहा है वो,,
चाहकर न चाहकर, जैसे भी, मुझे भुला रहा है वो।-
कुछ ख़्वाब हैं मेरे जिन्हें आँखों में लिए चलता रहता हूं
मंज़िल के करीब हूं इसलिए सभी को खलता रहता हूं
सोने को कुंदन बनाने को आग में तपाना जरूरी है "निहार"
ख़ुद को और निखार सकूं इसलिए आग में जलता रहता हूं-
यूँ तसल्ली दे रहे हैं
हम दिल-ए-बीमार को
जिस तरह थामे कोई
गिरती हुई दीवार को !-
कुछ बातें , मुलाकातें अधूरी ही रह जाती है
हर सफर में मंजिल हो ये ज़रूरी तो नहीं ।।-
लोग कहते है अकेले आये हो अकेले जाओगे 😊
जानब आज दिल में ख्याल आया 🙊
पता है क्या? 😒
वो ये की दो लोगों के बिना कोई आया भी नहीं 😜
और चार लोगों के बिना कोई गया भी नहीं 🤗..
Arohi__♥️-
दिल का हर जख्म खुद ही सिल लेता हूं मैं
ये ज़ख्मों की आबरू मुझे हमनवां समझती है
निकल पड़ा हूं, सितारों को बना मंज़िल अपनी
वो मुझ अकेले को ही पूरा कारवां समझती है
यूं तो ताने ज़माने के सुन लेती है चुपचाप मगर
मेरे समझाने पर भी मुझे बद-गुमां समझती है
बोलता हूं तो वो मुझसे लड़ भी लेती है "निहार"
जो चुप रहूं तो मुझे बे-जुबां समझती है..!!
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