मेरे सामने बैठा है,,मुझे आज़मा रहा है वो,
मैं सोच रही हूँ कि क्या जता रहा है वो?
कोई दिल-ए-तमन्ना,,के जो छुपा रहा है वो,
या नहीं है कोई दिल में तमन्ना,,बता रहा है वो?
नजरें मिलाकर चाहना मुझको भरमा रहा है वो,
या फकत यूँ ही मुझसे नजरें मिला रहा है वो?
इनकार-ए-मोहब्बत करके भी निभा रहा है वो,
तर्क-ए-ताल्लुक करके भी समझा रहा है वो।
साफ लफ्ज़ो में इंकार कर फरमा रहा है वो,
फिर रुख बदलकर अपना कुछ घबरा रहा है वो।
भूल कर सब,,,नई दुनिया बसा रहा है वो,,
चाहकर न चाहकर, जैसे भी, मुझे भुला रहा है वो।
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