मुझे भी ढूँढ लिया करो कि मैं भी कहीं खो गयी हूँ
मिल नहीं पाती हूँ खुद से क्योंकि कहीं गुम हो गई हूँ...
गीली मिट्टी सी आई थी दहलीज़ तक तुम्हारी घर के
अंदर आते ही ना जाने कितने सांचों में ढल गई हूँ ...
ख़्वाब नहीं देखे कभी मैंने चाँद सितारों वाले
घर द्वार आँगन बस इन्हीं में उम्र काटती रही हूँ ...
किरदार इतने निभाये ज़िंदगी की कहानी में कि
इन किरदारों के बीच खुद का वजूद ढूँढ रही हूँ ...
जो मिल जाऊं मैं तो तुम मुझे भी बताना
खुद से मिलने को मैं अरसे से बेताब हो रही हूँ...-
किरदार आईने का आसां नहीं है 'कृष्ण'
रूबरू हकीकत से वो कराता है उम्रभर...-
बग़ावत करने चल पड़ा है कहानी का वह एक पात्र,
ऊब चुका है परिस्थितिवश किरदार बदलते बदलते!-
Dear jindagi...........
चेहरे कई बार बदले तुमने!
😊
कितने ही किरदार बदले तुमने!!-
ज़िंदा तमाम शय है, बस प्यार मर गया है
दुनिया से शख्स जो था बेज़ार, मर गया है
ताज़ीम-ए-शैख़ कोई करता नहीं मियां अब
नज़रों में नौजवां की घर बार मार गया है
इस मौसम-ए-ख़िज़ाँ में सुर्खी हवा में देखो
लगता है जैसे कोई गुलज़ार मर गया है
अल्फ़ाज़-ए-बदकलामी बेग़ैरती की बातें
गो मेहफ़िल-ए-रवाँ का मैयार मर गया है
कुछ तो इलाज 'मूसा' तू ढूंढ दर्द-ओ-ग़म का
ग़म बढ़ते जा रहे हैं ग़मख्वार मर गया है
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खुद में खोया हुआ है
मेरा किरदार...!
बोली लगा के गया है
जबसे मेरा हकदार...!!-
बाटता हुँ खुशियाँ गम का खरीदार हुँ ।
कोई तो हमे बतलाए, मैं... किरदार कैसा हुँ ।।-
तोहमत मेरे किरदार में थी ?
या मुझे हासिल ना करने के तेरे अहंकार में थी ...
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कभी कभी कुछ कहांनियों को खत्म करने के लिए,
पहले उनके किरदारों को खत्म करना पड़ता हैं ।।
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लेकर चंद तस्वीरें साथ मेरे ,खुद को वो सिर्फ मेरा बताता है
बड़ी वफ़ा के साथ किरदार बेवफ़ाई वाला निभाता है..!
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